Tulsi Vivah 2025 हिन्दू धर्म का एक अत्यंत शुभ और पवित्र पर्व है, जिसमें देवी तुलसी (वृंदा) और भगवान विष्णु (शालिग्राम) के विवाह का अनुष्ठान किया जाता है। वर्ष 2025 में यह पर्व रविवार, 2 नवंबर को मनाया जाएगा। उस दिन द्वादशी तिथि सुबह 7:31 बजे से आरंभ होकर अगले दिन 3 नवंबर, 2025 की सुबह 5:07 बजे तक रहेगी। तुलसी विवाह का यह मुहूर्त कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी में समाहित है, जो देवउठनी एकादशी के ठीक अगले दिन मनाया जाता है। इस लेख में हम तुलसी विवाह 2025 से जुड़े सभी महत्वपूर्ण पहलुओं—तिथि, मुहूर्त, महत्व, पूजा सामग्री, विधि, पौराणिक कथा, regional परंपराएँ, लाभ, विवादित प्रश्नोत्तर और अन्य उपयोगी जानकारी—का विस्तारपूर्वक वर्णन करेंगे।
1. Tulsi Vivah 2025 का पौराणिक एवं धार्मिक महत्व
तुलसी विवाह को हिन्दू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को आयोजित यह अनुष्ठान देवी तुलसी (जिन्हें वृंदा के नाम से भी जाना जाता है) का भगवान विष्णु (शालिग्राम स्वरूप) से विवाह का प्रतीक है। तुलसी को माँ लक्ष्मी का अवतार माना जाता है और शालिग्राम शिला में भगवान विष्णु का विराट स्वरूप प्रतिष्ठित होता है। इसलिए, तुलसी विवाह न केवल दृष्टि-सौंदर्य की दृष्टि से बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
1.1 देवउठनी एकादशी से संबंध
- देवउठनी एकादशी (जिसे गोवर्धन पूजा के साथ मनाया जाता है) भगवान विष्णु के चार महीने के योग निद्रा से उठने का प्रतीक है।
- उसके अगले दिन, यानि द्वादशी को तुलसी विवाह का मुहूर्त निर्धारित होता है, जिससे वैवाहिक शुभ मुहूर्तों का आरम्भ माना जाता है।
- इस दिन से विवाहित गतिविधियाँ, गृह प्रवेश, नामकरण आदि अन्य शुभ कार्य करने के लिए शुभ मान्यताएँ आरंभ हो जाती हैं।
1.2 धार्मिक धार्मिक पृष्ठभूमि
शास्त्रों में वर्णित है कि देवी तुलसी ने भगवान विष्णु को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु स्वयं शालिग्राम के रूप में प्रकट हुए तथा उन्होंने उनसे विवाह किया। इस कारण तुलसी विवाह को लक्ष्मी-विष्णु मिलन का प्रतीक भी कहा जाता है। तुलसी को सभी रोगों का निवारक और पापों का नाशक माना जाता है, इसलिए तुलसी विवाह से समाज में भक्ति, समृद्धि, और पारिवारिक कल्याण की वृद्धि होती है।
2. तिथि एवं शुभ मुहूर्त – 2025
वर्ष 2025 में तुलसी विवाह निम्नलिखित तिथि एवं समय अनुसार मनाया जाएगा:
तिथि का नाम | दिनांक एवं दिन | समय (आरंभ – समाप्त) |
---|---|---|
कार्तिक शुक्ल द्वादशी | रविवार, 2 नवंबर 2025 | सुबह 7:31 बजे से 3 नवंबर 2025 सुबह 5:07 बजे तक |
2.1 मुहूर्त के विशेष पहलू
- विवाह मुहूर्त प्रारंभ: कार्तिक शुक्ल द्वादशी, सुबह 7:31 बजे (2 नवंबर 2025)
- विवाह मुहूर्त समाप्त: अगले दिन, कार्तिक शुक्ल द्वादशी की तिथि समाप्ति, सुबह 5:07 बजे (3 नवंबर 2025)
- उपरि-प्रवेश योग्य समय (उपयोगी कलावा): चतुर्दशी तिथि एवं पूर्णिमा तिथि अतिदिन (5 नवम्बर शाम तक उत्तरायण संक्रांति तक) भी कुछ समुदायों में तुलसी विवाह के शुभ मुहूर्त माने जाते हैं।
- पक्ष एवं योग: द्वादशी तिथि की विशेषता तथा पूर्वभाग योग से अनुकूल समय चुना जाता है।
2.2 क्यों केवल इस विंदु (देखें):
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, तुलसी विवाह के लिए द्वादशी तिथि का होना अति आवश्यक है क्योंकि उस दिन देवी तुलसी का स्वरूप पूर्ण प्रभामंडल में होता है और पूजन-पूजा का फल अति उत्तम माना जाता है।
3. तुलसी विवाह 2025 की प्रारंभिक तैयारी
तुलसी विवाह करने से पूर्व निम्नलिखित तैयारियाँ करनी चाहिए, ताकि संपूर्ण अनुष्ठान विधिपूर्वक सम्पन्न हो सके:
3.1 स्थान का चयन
- जहाँ तुलसी का पौधा लगा हो, उस स्थल को ध्यानपूर्वक चुना जाए। प्रायः यह घर के आंगन या मंदिर के पास होता है।
- तुलसी के पौधे के चारों ओर चौकोर या वृत्ताकार क्षेत्र तैयार करें। मिट्टी का उपले का चिरंजीवी दहन करने योग्य स्थान बनाएँ।
- शालिग्राम शिला या भगवान विष्णु की मूर्ति रखने के लिए स्वच्छ, ऊँचा (पायदान युक्त) स्थान सुनिश्चित करें।
3.2 तुलसी के पौधे की साफ़-सफाई
- तुलसी के पौधे की जड़ से लेकर पत्तियों तक सफाई सुनिश्चित करें, ताकि किसी भी प्रकार का कीट न हो।
- पौधे को हल्का गमला बदलने के लिए मिटटी की तैयारी कर लें, यदि आवश्यक हो तो गमला बदलकर नई उपजाऊ मिट्टी डालें।
- पूजा के पूर्व तुलसी के चारों तरफ सात पग (चौक) में सफाई पूरा होनी चाहिए।
3.3 शालिग्राम शिला का प्रबंध
- अगर घर में शालिग्राम शिला नहीं हो, तो स्थानीय मठ-मंदिर या तीर्थस्थल से शुद्धता सुनिश्चित कर शालिग्राम प्राप्त करें।
- शालिग्राम शिला को गंगाजल या गंगास्नान से अभिषिक्त कर लें, ताकि उसका प्रभाव पवित्र हो जाए।
- शालिग्राम के समक्ष एक सुन्दर आसन (चटाई या मखमली कपड़ा) बिछाएं, जहाँ विवाह के समय वर रूपी शालिग्राम विराजमान रहेगा।
4. पूजा सामग्री एवं आवश्यकता
तुलसी विवाह के संपूर्ण अनुष्ठान के लिए निम्नलिखित सामग्री पूर्व-संध्या में एकत्रित कर लें, ताकि हर क्रिया बिना विघ्न के सम्पन्न हो सके:
4.1 तुलसी सम्बन्धी सामग्री
- तुलसी का पौधा: मध्यम आकार का, ताज़ा और हरा-भरा तुलसी का पौधा।
- लाल चुनरी/दुपट्टा: तुलसी के चारों और लपेटने तथा तुलसी को दुल्हनवेश देनے के लिए।
- लाल सिंदूर एवं केसर: तुलसी की मीनार और शाखाओं पर केसर, सिंदूर चड़ाने के लिए।
- गुड़, फूल, अक्षत: तुलसी की पूजा-अर्चना में मुख्य रूप से उपयोग।
- दूर्वा/बेलपत्र: तुलसी पर अर्पित करने के लिए।
4.2 शालिग्राम मूर्ति सम्बन्धी सामग्री
- शालिग्राम शिला या विष्णु जी की मूर्ति: वर के रूप में प्रमुख पूजा हेतु।
- लाल चुनरी/दुपट्टा: शालिग्राम शिला को वर के वस्त्र रूप में सजाने के लिए।
- हल्दी, सिंदूर एवं केसर: मूर्ति पर आभूषण के रूप में लगाने हेतु।
- मोगरा, गुलाब, या कोई सुगंधित फूल: वर-वधू दोनों पर पुष्प अर्पित करने के लिए।
- नैवेद्य (भोग): मिश्री, सुपारी, केसर मिलाकर पाँचामृत स्वरूप; इसके अतिरिक्त ठंडा दूध, फल, मिठाई आदि।
4.3 अनुष्ठानिक सामग्री
- दीपक एवं धूपबत्ती: पूजा के समय दीप और धूप अर्पित करने के लिए।
- नवशुद्ध तिलक सामग्री: कुमकुम, रोली, चावल।
- पंचोपचार: पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर के मिश्रण) – तुलसी एवं शालिग्राम पर अभिषेक हेतु।
- नारीयल, सुपारी, थोड़ी-सी ग्रामीण मिठाई: कन्यादान के समय देय गिft रूप में।
- नलग्राम (बरात) हेतु वस्त्र एवं आभूषण: वर-वधू दोनों के वस्त्र, मेहँदी, आभूषण आदि। यह एक सांकेतिक रीति है, जहाँ वर रूपी शालिग्राम को दूल्हा की वेशभूषा से सजाया जाता है।
5. तुलसी विवाह की विस्तृत पूजा विधि
तुलसी विवाह का अनुष्ठान विभाजित दो मुख्य चरणों में सम्पन्न होता है: (1) पूर्व-संध्या एवं तैयारी, (2) विवाह सम्प्रदाय। निम्नलिखित विस्तृत चरणों का पालन करें:
5.1 पूर्व-संध्या एवं संकल्प
- स्नान आदि: रविवार की प्रातः जल्दी स्नान कर साफ कपड़े धारण करें। पारम्परिक रूप से हल्का पीला या क्रीम रंग का वस्त्र शुभ माना जाता है।
- पूजा स्थल की पवित्रता: तुलसी के चारों ओर गंगाजल का छिड़काव करें, ताकि वहां से सभी दोष मिटें।
- संकल्प मंत्र एवं उद्देश्य: मुख पूजा स्थल की ओर करके निम्न संकल्प उच्चारण करें: “ॐ श्री गुरुवित्यर्थे तुलसी-विवाह सम्पादनाय श्री-हरि-वृन्दा-विवाहे नमः।” इस संकल्प में अपनी नीयत एवं उद्देश्य जैसे पारिवारिक सुख, वैवाहिक सौभाग्य, समृद्धि, इत्यादि विसर्जित करें।
5.2 तुलसी का श्रृंगार (वधू श्रृंगार)
- अपनी संकल्पना के अनुसार तुलसी को लाल चुनरी से सजाएँ। चुनरी के किनारों पर हल्दी एवं सिंदूर चढ़ाएँ।
- तुलसी के गले में माला (सुगंधित फूलों की) पहनाएँ और छोटी अलंकार (कंगन, छोटी आननमणि) सजाएँ।
- पत्तों पर हल्दी एवं केसर का सिंदूर लगाकर सुन्दर रंगत प्रदान करें।
- तुलसी की पत्तियों में हल्दी-चावल मिलाकर आँखें, नाक, कण्ठ आदि पर हल्दी के चिह्न अंकित करें (यह एक सांकेतिक विधि है)।
5.3 शालिग्राम की श्रृंगार (वर श्रृंगार)
- शालिग्राम शिला (या विष्णु जी की मूर्ति) को लाल चुनरी से ढकें। चुनरी पर हल्दी एवं सिंदूर से हलके-हलके अलंकरणी क्रीडा करें।
- मूर्ति के ऊपर माला चढ़ाएँ, फूल चढ़ाएँ और सिंदूर से शेखर (तिलक) लगाएँ।
- चुनरी के ऊपर हल्दी-चावल मिलाकर हल्का घरेलू श्रृंगार करें।
5.4 मंगलाष्टक एवं वधू-वर पूजन
अब तुलसी एवं शालिग्राम के समक्ष दीप एवं धूप जलाकर निम्न प्रकार से नगाड़ा बाजने के साथ पूजन प्रारम्भ करें:
- सर्वप्रथम चरण: तुलसी एवं शालिग्राम के समक्ष दीपक तथा धूप अर्पण करें।
- द्वितीय चरण: तुलसी और शालिग्राम का मंगलाष्टक मंत्र जाप—ॐ श्री तुलसीं वन्दे विष्णुं वन्दे शेषनाग-पतये नमः॥
- तृतीय चरण: तिलक-चावल एवं फूल अर्पित करें, फिर तुलसी पर पंचामृत तथा शालिग्राम पर पंचामृत से अभिषेक करें। अभिषेक के पश्चात शालिग्राम पर दूर्वा अर्पित करें।
- चतुर्थ चरण: वर-वधू (तुलसी-विराç शालिग्राम) को सप्तवचन फेरे दिलाएँ:
- पहला फेरा: “मैं तुलसी तेरे संग दूना, तू मुझ संग शेषनाग-रूप धारण करना।”
- दूसरा फेरा: “मैं तुलसी तेरे संग पूरना, तू मुझ संग आशीर्वाद पेरना।”
- तीसरा फेरा: “हम तुलसी और विष्णु, सत्पथ पर जीवन चलेंगे।”
- चौथा फेरा: “हम स्वर्ग लोक तथा जीवन, सुख-शांति का संचालन करेंगे।”
- पाँचवाँ फेरा: “हम तुलसी और विष्णु, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति करेंगे।”
- छठा फेरा: “हम परिवार में सुख, समृद्धि, अनुकम्पा लाएंगे।”
- सातवाँ फेरा: “हम तुलसी और विष्णु, परस्पर जीवन में सच्चे साथी बनकर रहें।”
- पञ्चम चरण: तुलसी एवं शालिग्राम को सिंदूरा (दुल्हन-मंगलसूत्र) तथा फूल से श्रृंगारित करें। तुलसी-वधू के चारों ओर चंदन से एक हल्का चक्र बनाएँ।
- षष्ठम चरण: गौमुख देहलीज (तीर) पर दोनों स्तम्भों के समक्ष बन्दनवार डालें, जिससे दूल्हा दुल्हन का पवित्र बंधन पूर्ण हो।
- सप्तम चरण: कन्यादान विधान: यदि कोई कन्या विवाह योग्य हो, तो उसे यह विधि कराई जाती है—कन्या को सिंदूर कूंच कर लेने का निर्देश देते हुए वर रूपी शालिग्राम के आगे सिंदूर अर्पित करायें।
5.5 आशीर्वाद एवं प्रसाद वितरण
- पूजा सम्पन्न होने के पश्चात परिवार के बड़े-बुजुर्गों द्वारा तुलसी-वधू एवं वर-वधू (शालिग्राम) को आशीर्वाद दें।
- प्रसाद (नारियल, सुपारी, मिठाई, फल, पुष्प, अक्षत) तैयार रखें और परिवार के सभी सदस्यों एवं उपस्थित समाज/मित्रों में वितरण करें।
- अंत में समस्त उपस्थित सबको प्रसाद ग्रहण कर वेद मंत्रोच्चारण से धन्यवाद दें।
📖 तुलसी विवाह की पौराणिक कथा
🌸 वृंदा और जालंधर की कथा
प्राचीन काल में दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जलंधर नामक राक्षस से हुआ। जलंधर अत्यंत पराक्रमी और शक्तिशाली था, जिसकी शक्ति का मुख्य कारण उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म था। वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थीं, और उनकी भक्ति के प्रभाव से जलंधर अजेय हो गया था।
जलंधर ने देवताओं पर अत्याचार करना शुरू कर दिया, जिससे सभी देवता चिंतित हो गए। उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने समझा कि जब तक वृंदा का सतीत्व अटूट है, तब तक जलंधर को पराजित करना असंभव है।
🕉️ भगवान विष्णु का छल
भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के समक्ष प्रकट हुए। वृंदा ने उन्हें अपने पति समझकर उनका स्वागत किया, जिससे उनका सतीत्व भंग हो गया। उसी क्षण जलंधर युद्ध में मारा गया।
जब वृंदा को इस छल का पता चला, तो वह अत्यंत क्रोधित हुईं और भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे। इस श्राप के प्रभाव से भगवान विष्णु शालिग्राम पत्थर बन गए।
🔥 वृंदा का सतीत्व और तुलसी का जन्म
वृंदा ने अपने पति की मृत्यु के पश्चात सती हो गईं। जहां उनका शरीर भस्म हुआ, वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। भगवान विष्णु ने तुलसी से कहा कि वे उनके बिना प्रसाद स्वीकार नहीं करेंगे, और हर वर्ष कार्तिक शुक्ल द्वादशी को उनका विवाह शालिग्राम रूप में तुलसी से होगा।
7. तुलसी विवाह के लाभ एवं फल
तुलसी विवाह का अनुष्ठान करने के अनेक आध्यात्मिक, पारिवारिक और सामुदायिक लाभ हैं:
7.1 व्यक्तिगत एवं पारिवारिक लाभ
- विवाह योग्य कन्याओं के लिए शुभ संकल्प: यदि घर में कन्या की शादी चिन्हित है, तो तुलसी विवाह के दिन कन्या का विवाह होने की शुभकामना अधिक प्रभावशाली मानी जाती है।
- वैवाहिक जीवन में समृद्धि: नवविवाहित दम्पति के घर तुलसी विवाह का आयोजन करने से उनके वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- पारिवारिक कलह का निवारण: परम्परागत विश्वास है कि तुलसी विवाह करने से घर में चल रहे वैचारिक एवं पारिवारिक संघर्ष दूर होते हैं।
- धार्मिक पुण्य की प्राप्ति: तुलसी-पूजन और विवाह अनुष्ठान से ब्रह्माण्डीय पुण्य की प्राप्ति होती है जो करमफल से बंधन मुक्त करने में सहायक होता है।
- सामाजिक सौहार्द्र: यह सामाजिक एकता और सामूहिक भक्ति का प्रतीक है, जब पूरे समाज के लोग मिलकर इस पर्व को आत्मीयता से मनाते हैं।
7.2 आध्यात्मिक एवं रोगनिवारक लाभ
- रोगनिवारक गुण: तुलसी का सेवन (पत्तियाँ, चूर्ण, तुलसी की चाय) करने से अनेक शारीरिक रोगों (जैसे सर्दी-बुखार, खांसी, अस्थमा) से राहत मिलती है। तुलसी विवाह के दिनों में तुलसी को घर में स्थापित करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- मानसिक शांति एवं एकाग्रता: तुलसी की सुगंध और उसके चारों ओर शांतिपूर्वक मंत्रोच्चारण से मानसिक तनाव कम होता है एवं मन को शांति मिलती है।
- सकारात्मक वातावरण: धार्मिक अनुष्ठान के माध्यम से घर-परिवार में सकारात्मक वातावरण उत्पन्न होता है, जिससे सभी सदस्य आध्यात्मिक ऊँचाई और नैतिकता की ओर प्रेरित होते हैं।
8. क्षेत्रीय परंपराएँ एवं रीति-रिवाज
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में तुलसी विवाह की परंपराएँ थोड़ा अलग ढंग से मनाई जाती हैं। आइए, प्रमुख क्षेत्रों में इसके स्वरूप को जानें:
8.1 उत्तर भारत (उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा)
- तुलसी-विवाह मंडप का निर्माण घर के आँगन में किया जाता है, जिसमें चौकोर मंडप के चारों ओर तुलसी के पौधों को सजाया जाता है।
- वधू रूपी तुलसी पालकी (तुलसी की छोटी बग्गी) से विराç (वर) रूपी शालिग्राम के पास लाकर फेरे दिलाए जाते हैं।
- समुदाय के बुजुर्ग भजन-कीर्तन करते हुए मंत्रोच्चारण कराते हैं।
- लल्लन-शुल्क (कन्यादान आदि) तुलसी के बगल में किया जाता है।
8.2 पश्चिमी भारत (महाराष्ट्र, गुजरात)
- महाराष्ट्र में तुलसी विवाह को “वृंदावन” या “वृंदा विवाह” कहा जाता है।
- गुजरात में तुलसी के चारों ओर रंगोली बनाई जाती है और पारंपरिक ढोल-ताशों के साथ ढोलक पर कीर्तन होते हैं।
- ब्राह्मण पुजारी द्वारा विवाह मंत्र पढ़वाया जाता है, तथा विवाह के पश्चात प्रसादी भोजन आयोजित किया जाता है।
8.3 दक्षिण भारत (तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक)
- तुलसी विवाह को स्थानीय भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे तमिल में “துளசி திருமணம் (Thuḷaci Tirumaṇam)”।
- तमिलनाडु में तुलसी के चारों ओर रंग-बिरंगे फूलों की माला-वाली सजावट की जाती है।
- आंध्रप्रदेश में पूजा के बाद पूरे परिवार को प्रसाद के रूप में पेय, खिचड़ी, पापड़, मसालेदार सब्ज़ी आदि परोसे जाते हैं।
- कर्नाटक में तुलसी विवाह से संबंधित लोकगीत गाए जाते हैं और नृत्य प्रस्तुतियां होती हैं।
8.4 पूर्वोत्तर भारत एवं अन्य क्षेत्र
- पूर्वोत्तर राज्यों में तुलसी का महत्व थोड़ा कम है, परंतु जहां तुलसी पूजा की प्रथा है, वहां भी तुलसी विवाह की रस्में सुचारू रूप से निभाई जाती हैं।
- गृहस्थी के छोटे-छोटे पर्वों में तुलसी विवाह को भी स्थान दिया जाता है, जिसमें भोजन, भजन-कीर्तन, सामूहिक प्रार्थना आदि शामिल हैं।
9. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
9.1 तुलसी विवाह क्यों आवश्यक है?
तुलसी विवाह का आयोजन धार्मिक दृष्टि से पापों का नाश, आध्यात्मिक शुद्धि और पारिवारिक कल्याण के लिए किया जाता है। यह देवोत्थान एकादशी के बाद वैवाहिक मुहूर्त की शुरुआत का प्रतीक भी है।
9.2 क्या तुलसी विवाह घर पर अकेले किया जा सकता है?
हाँ, तुलसी विवाह घर पर भी विधिपूर्वक किया जा सकता है। परन्तु यदि परिवार में ब्राह्मण पुजारी या ज्योतिषाचार्य उपलब्ध हों, तो उनकी सलाह एवं मंत्रों से अनुष्ठान अधिक प्रभावशाली होता है।
9.3 तुलसी विवाह से पूर्व क्या व्रत करना चाहिए?
बहुत से लोग दिवसा गोवर्धन पूजा कर एकादशी व्रत रखते हैं। द्वादशी के दिन भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा के पूर्व हल्का व्रत या निर्जला व्रत (केवल गंगाजल ग्रहण) भी रखा जा सकता है।
9.4 यदि घर में तुलसी का पौधा नहीं है, तब क्या करें?
यदि आपके घर में मूलतः तुलसी का पौधा नहीं है, तो आप अभी भी तुलसी विवाह कर सकते हैं। आपके नजदीकी मंदिर या मठ से तुलसी का पौधा लाकर वह स्थान बना सकते हैं, जहाँ सालभर से पूजा होती है। ध्यान रहें कि पौधा ताजा हो और स्वस्थ हो।
9.5 कौन-कौन से मंत्र तुलसी विवाह में उच्चारित करें?
- मंगलाष्टक मंत्र: श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय १२ से नियमः मंत्रः पढ़ें (विशेषकर) “क्षमां यज्ञेन धारयेत्…” आदि मंगलमय मंत्र तुलसी विवाह में प्रभावी होते हैं।
- विवाह मंत्र: “सह नाववतु सह नौ भुनक्तु…” आदि श्लोक तुलसी-वधू और शालिग्राम-विराç (वर) के लिए पढ़े जाते हैं।
9.6 तुलसी विवाह के बाद कौन-सा व्रत पूजन जारी रखना चाहिए?
तुलसी विवाह के बाद, कार्तिक मास का पूर्णिमा (कृष्ण पक्ष) एक माह तक दीपदान का व्रत रखा जा सकता है। कुछ समुदायों में प्रतिदिन तुलसी को जल और फूल चढ़ाने का नियम बना रहता है।
10. विशेष सुझाव एवं सावधानियाँ
10.1 तुलसी पौधे की रक्षा
- तुलसी का पौधा अत्यंत पवित्र माना जाता है, इसलिए पूजा के पश्चात उसे पर्याप्त जल एवं खाद दें, ताकि पौधा हरा-भरा बना रहे।
- किसी भी प्रकार के कीटनाशक रसायन का प्रयोग पूजा से पूर्व-पर्याप्त दिनों से पहले कर दें, ताकि पूजा के दिन तुलसी स्वच्छ और स्वस्थ हो।
10.2 शालिग्राम शिला की शुद्धता
- शालिग्राम शिला को कभी भी बिना अभिषेक या शुद्धिकरण के विधिवत पूजा स्थल पर न लाएं।