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Aaj Kya Hai > धर्म संसार > तिथि > द्वितीया तिथि

द्वितीया तिथि

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द्वितीया तिथि
द्वितीया तिथि

द्वितीया तिथि, हिंदू पंचांग की दूसरी तिथि है, जो प्रत्येक पक्ष (शुक्ल और कृष्ण) में आती है। यह तिथि धार्मिक, आध्यात्मिक और पारिवारिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन कई प्रमुख पर्व, व्रत और पूजन विधियाँ संपन्न की जाती हैं, जो जीवन में सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती हैं।

Contents
🕉️ द्वितीया तिथि का धार्मिक महत्व🌸 द्वितीया तिथि से जुड़े प्रमुख पर्व और व्रत📖 द्वितीया तिथि की पौराणिक कथाएँ🧡 भाई दूज (यम द्वितीया) की पौराणिक कथा🌸 फुलेरा दूज की पौराणिक कथा🪔 द्वितीया तिथि की पूजा विधि और नियम🔚 निष्कर्ष

🕉️ द्वितीया तिथि का धार्मिक महत्व

द्वितीया तिथि को “भद्रा तिथि” कहा जाता है, जिसका स्वामी ब्रह्मा है और यह मंगलप्रद मानी जाती है। इस दिन शुभ कार्यों की शुरुआत, यात्रा, व्यापार, और गृह प्रवेश जैसे कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से, यह तिथि स्थिरता, संतुलन और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है। इस दिन व्रत और विशेष पूजा करने से मानसिक शांति, पारिवारिक सौहार्द और समृद्धि की प्राप्ति होती है।


🌸 द्वितीया तिथि से जुड़े प्रमुख पर्व और व्रत

द्वितीया तिथि पर विभिन्न पर्व और व्रत मनाए जाते हैं, जो इस तिथि की महत्ता को दर्शाते हैं।

📅 प्रमुख पर्व और व्रत:

पर्व/व्रततिथिविशेषता
भाई दूज (यम द्वितीया)कार्तिक शुक्ल द्वितीयाभाई-बहन के प्रेम का प्रतीक; यमराज और यमुनाजी की कथा से संबंधित।
फुलेरा दूजफाल्गुन शुक्ल द्वितीयाराधा-कृष्ण की फूलों की होली; मथुरा-वृंदावन में विशेष उत्सव।
नवरात्रि द्वितीयाचैत्र/आश्विन शुक्ल द्वितीयामाँ ब्रह्मचारिणी की पूजा; तपस्या और संयम का प्रतीक।
नारद जयंतीज्येष्ठ कृष्ण द्वितीयादेवर्षि नारद की जयंती; भगवान विष्णु की पूजा।

📖 द्वितीया तिथि की पौराणिक कथाएँ

भाई दूज (यम द्वितीया) और फुलेरा दूज की विस्तृत पौराणिक कथाएँ प्रस्तुत हैं, जो इन पर्वों के धार्मिक महत्व और सांस्कृतिक परंपराओं को उजागर करती हैं।


🧡 भाई दूज (यम द्वितीया) की पौराणिक कथा

भाई दूज, जिसे यम द्वितीया भी कहा जाता है, कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है।

📖 कथा का सारांश

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव और उनकी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज और पुत्री यमुना थे। यमुना अपने भाई यमराज से अत्यंत स्नेह करती थीं और उन्हें बार-बार अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित करती थीं। यमराज अपने कार्यों में व्यस्त रहने के कारण यमुना के निमंत्रण को स्वीकार नहीं कर पाते थे।

एक दिन, कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर पहुंचे। यमुना ने अपने भाई का स्वागत तिलक और विविध व्यंजनों से किया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना से वर मांगने को कहा। यमुना ने वरदान मांगा कि इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाएगा और भोजन करेगा, उसे यमराज का भय नहीं रहेगा। यमराज ने यह वरदान स्वीकार किया।

तभी से यह परंपरा भाई दूज के रूप में प्रचलित हुई, जिसमें बहनें अपने भाइयों को तिलक करती हैं और उनके दीर्घायु और समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन यमराज और यमुना की पूजा का भी विशेष महत्व है।


🌸 फुलेरा दूज की पौराणिक कथा

फुलेरा दूज फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व राधा-कृष्ण के प्रेम और होली के प्रारंभ का प्रतीक है।

📖 कथा का सारांश

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान श्रीकृष्ण राधा रानी से मिलने वृंदावन नहीं जा पाए, जिससे राधा अत्यंत दुखी हो गईं। उनकी उदासी के कारण वृंदावन के फूल मुरझा गए। जब श्रीकृष्ण को यह ज्ञात हुआ, तो वे तुरंत राधा से मिलने वृंदावन पहुंचे। उनके आगमन से राधा प्रसन्न हुईं और वृंदावन में फिर से हरियाली लौट आई।

श्रीकृष्ण ने राधा पर फूल बरसाए, और राधा ने भी प्रेमपूर्वक उन पर फूल फेंके। यह दृश्य देखकर गोपियां और ग्वाल भी इस प्रेम उत्सव में शामिल हो गए और सभी ने मिलकर फूलों की होली खेली। तभी से फुलेरा दूज का पर्व मनाया जाने लगा।

इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा की जाती है, उन्हें फूलों से सजाया जाता है, और मंदिरों में विशेष उत्सव होते हैं। ब्रज क्षेत्र में यह पर्व विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है।


🪔 द्वितीया तिथि की पूजा विधि और नियम

द्वितीया तिथि पर पूजा और व्रत करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दिन की पूजा विधि निम्नलिखित है:

  1. प्रातःकाल स्नान: स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को स्वच्छ करके गंगाजल से शुद्ध करें।
  3. देवताओं की स्थापना: भगवान विष्णु, यमराज, यमुनाजी, राधा-कृष्ण या माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  4. पूजन सामग्री: फूल, दीपक, धूप, नैवेद्य, रोली, अक्षत, मिठाई आदि।
  5. मंत्र जाप: संबंधित देवता के मंत्रों का जाप करें।
  6. व्रत कथा का पाठ: व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें।
  7. भोजन और दान: व्रत के उपरांत ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें।

🔚 निष्कर्ष

द्वितीया तिथि न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पारिवारिक संबंधों को मजबूत करने का भी अवसर प्रदान करती है। इस तिथि पर मनाए जाने वाले पर्व और व्रत, जैसे भाई दूज, फुलेरा दूज, और नवरात्रि की द्वितीया, हमें प्रेम, समर्पण, और तपस्या का संदेश देते हैं। इन पर्वों के माध्यम से हम अपने जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि ला सकते हैं।

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