प्रतिपदा तिथि नए चंद्र मास की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन को शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए अत्यंत मंगलमय माना जाता है। खासकर चैत्र प्रतिपदा को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।
प्रतिपदा पर मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। विशेषकर चंद्र दर्शन के बाद पूजा-अर्चना की जाती है। कथा सुनने और भूमि पूजन से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
द्वितीया तिथि भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। इस दिन भाई दूज का पर्व होता है, जिसमें बहनें अपने भाइयों की लंबी आयु और खुशहाली के लिए पूजा-अर्चना करती हैं।
भाई दूज पूजा में बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाकर आशीर्वाद देती हैं। इसके बाद ब्राह्मणों को दान देकर व्रत पूर्ण किया जाता है।
तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया के रूप में जाना जाता है। यह दिन सभी शुभ कार्यों के लिए अति-अमृत माना जाता है—दान और निवेश कभी घटते नहीं।
गंगा स्नान, दान-पुण्य, गणेश एवं लक्ष्मी पूजा से समृद्धि आती है। कथा में इस दिन की गई शुरुआत अनंत फलदायक मानी जाती है।
चतुर्थी तिथि गणेश जी को प्रिय मानी जाती है। संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रमा को अर्घ्य देने से बाधाएं दूर होती हैं।
चावल, मूंग दाल, फलाहार द्वारा उपवास रखते हैं और चतुर्थी चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं। कथा में गणेश जी का प्रसाद विशेष बताया गया है।
पंचमी तिथि नाग देवता की आराधना के लिए प्रसिद्ध है। नाग देवता इस दिन पूर्ण योग में होते हैं, जिससे घर में बरकत आती है।
नाग पंचमी व्रत में नाग देवता को दूध अर्पित किया जाता है। पूजा के बाद कथा सुनने से पितरों की तृप्ति होती है।
षष्ठी तिथि संतान सुख और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है। छठ माता की आराधना से आशीर्वाद मिलता है।
छठ पूजा में सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाता है। उपवास, जल से स्नान और कथा पाठ अनिवार्य होता है।
सप्तमी तिथि सूर्य भगवान को समर्पित है। इस दिन रथ सप्तमी मनाई जाती है, जो सूर्य देव की आराधना का पर्व है।
रथ सप्तमी व्रत में सूर्य देव को अर्घ्य देकर नारियल, मौली और जल अर्पित किया जाता है। कथा में कहा गया है कि इस दिन की पूजा से आयु और ऊर्जा बढ़ती है।
अष्टमी तिथि शक्ति एवं भक्ति का प्रतीक है। इस दिन दुर्गा माता की पूजा से बुराई पर विजय मिलती है।
दुर्गा अष्टमी व्रत में कन्या पूजन किया जाता है। कन्याओं को नई वस्त्र और प्रसाद अर्पित करने से देवी प्रसन्न होती हैं।
नवमी तिथि विजय और सौभाग्य का प्रतीक है। इस दिन राम नवमी मनाई जाती है, जो भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में प्रसिद्ध है।
राम नवमी पूजा में श्रीरामचंद्र जी के भजन-कीर्तन एवं आरती की जाती है। कथा में वर्णित है कि भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
दशमी तिथि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। विजयदशमी के दिन रावण का दहन होता है और धर्म की स्थापना होती है।
विजयदशमी पूजा में गुरु-वंदना, आयुध पूजन एवं रावण दहन अनिवार्य है। कथा में बताया गया है कि सत्य के मार्ग पर चलने वाला विजयी होता है।
एकादशी तिथि मोक्ष प्राप्ति का दिन मानी जाती है। इस दिन व्रत रखकर विष्णु भक्ती से पापों से मुक्ति मिलती है।
एकादशी व्रत में निर्जला या फलाहार उपवास रखा जाता है। सुबह विष्णु सहस्रनाम पठित और शाम को भक्ति गीत अनिवार्य है।
द्वादशी तिथि व्रत पारण का दिन होती है। इस दिन व्रत का पारण करने से अन्नदान का आशीर्वाद मिलता है।
द्वादशी पर विष्णु को भोग अर्पित कर व्रत पूर्ण किया जाता है। कथा सुनने से समृद्धि और शांति मिलती है।
त्रयोदशी तिथि धन, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन धनतेरस का पर्व मनाया जाता है।
धनतेरस पूजा में धन्वंतरि और कुबेर की आराधना की जाती है। मिट्टी के दीपक जलाकर वैभव की कामना की जाती है।
चतुर्दशी तिथि भगवान शिव को समर्पित होती है। महाशिवरात्रि पर निर्जला व्रत और जागरण की परंपरा होती है।
महाशिवरात्रि व्रत में शिवलिंग पर भांग, दूध, बेलपत्र चढ़ाया जाता है। कथा में जागरण का महत्व बताया गया है।
पूर्णिमा को चंद्रमा के पूर्ण रूप का दिन और अमावस्या को चंद्रमा के अभाव का दिन माना जाता है।
पूर्णिमा पर सत्यनारायण पूजा और कथा, अमावस्या पर पितृ तर्पण और स्मरण अनिवार्य है।
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