Delhi हाई कोर्ट ने दिव्यांगों के लिए GST छूट समाप्ति पर केंद्र से जवाब मांगा
नई दिल्ली, 16 अक्टूबर 2025 – Delhi उच्च न्यायालय ने दिव्यांग व्यक्तियों के लिए कार खरीद पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) छूट समाप्त करने के केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाते हुए एक याचिका पर सुनवाई की है। अदालत ने केंद्र सरकार और GST परिषद से चार सप्ताह के भीतर इस मामले में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। यह कदम दिव्यांग समुदाय के अधिकारों और वित्तीय सहायता पर एक गंभीर बहस छेड़ता है, जिससे लाखों लोग प्रभावित हो सकते हैं।
याचिका और अदालती कार्यवाही का विवरण
यह मामला एक जनहित याचिका के माध्यम से अदालत में पहुंचा, जिसमें दावा किया गया कि GST छूट की समाप्ति दिव्यांगों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह फैसला दिव्यांगजनों की गतिशीलता और आत्मनिर्भरता को सीमित करता है, जो कि उनके मौलिक अधिकारों के विपरीत है। अदालत ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए, केंद्र सरकार से एक विस्तृत जवाब मांगा है, जिसमें छूट समाप्त करने के पीछे के तर्क और कानूनी आधार शामिल होने चाहिए।
GST छूट समाप्ति की पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक संदर्भ
पहले, दिव्यांग व्यक्तियों को विशेष रूप से अनुकूलित वाहनों की खरीद पर GST में छूट दी जाती थी, जिसका उद्देश्य उनकी वित्तीय बोझ को कम करना और समावेशी विकास को बढ़ावा देना था। यह छूट GST अधिनियम, 2017 के तहत प्रदान की गई थी और इसे दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के साथ जोड़ा गया था। हालांकि, हाल ही में, GST परिषद ने इस छूट को समाप्त करने का फैसला किया, जिसके कारणों का अभी तक सार्वजनिक रूप से खुलासा नहीं किया गया है। क्या यह कदम वास्तव में राजस्व बढ़ाने के लिए उठाया गया है, या फिर इसमें कोई और कारण छिपा है?
इस परिवर्तन ने दिव्यांग समुदाय में व्यापक चिंता पैदा की है, क्योंकि कारों की लागत में अचानक वृद्धि हो गई है। उदाहरण के लिए, एक अनुकूलित वाहन जिसकी कीमत पहले 5 लाख रुपये थी, अब छूट के अभाव में 6 लाख रुपये या अधिक हो सकती है, जिससे कई परिवारों के लिए इसे वहन करना मुश्किल हो गया है।
दिव्यांग समुदाय पर प्रभाव: आर्थिक और सामाजिक पहलू
GST छूट की समाप्ति ने दिव्यांग व्यक्तियों के जीवन पर तत्काल और गहरा प्रभाव डाला है। कारें न केवल उनकी दैनिक आवाजाही के लिए आवश्यक हैं, बल्कि ये उनकी स्वतंत्रता और रोजगार के अवसरों को भी सुनिश्चित करती हैं। इस छूट के हटने से, कई लोगों को वाहन खरीदने में आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनकी सामाजिक भागीदारी प्रतिबंधित हो सकती है।
वित्तीय बोझ और पहुंच में कमी
दिव्यांगजनों के लिए, एक कार की खरीद महज विलासिता नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां सार्वजनिक परिवहन सुविधाएं अपर्याप्त हैं। GST छूट के बिना, वाहनों की कुल लागत में 18% से 28% तक की वृद्धि हो सकती है, जो कि एक मध्यमवर्गीय परिवार के बजट पर भारी दबाव डालती है। क्या सरकार ने इस निर्णय के सामाजिक-आर्थिक परिणामों को पूरी तरह से आंका था?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से दिव्यांगों की शहरी और ग्रामीण गतिशीलता प्रभावित हो सकती है, जिससे उनके शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार तक पहुंच में बाधा आती है। उदाहरण के लिए, एक दिव्यांग व्यक्ति जो दूर के कार्यालय में काम करता है, अब कार खरीदने में असमर्थ हो सकता है, जिससे उसकी आजीविका खतरे में पड़ जाती है।
मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव
इसके अलावा, इस नीति परिवर्तन का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी गहरा है। दिव्यांगजन अक्सर समाज में भेदभाव और बहिष्कार का सामना करते हैं, और GST छूट जैसी योजनाएं उन्हें समान अवसर प्रदान करने में मदद करती हैं। छूट की समाप्ति से उनमें हताशा और अलगाव की भावना बढ़ सकती है, जो दीर्घकालिक सामाजिक एकीकरण को कमजोर कर सकती है।
कानूनी और नीतिगत विश्लेषण: क्या छूट समाप्ति वैध है?
याचिका में दावा किया गया है कि GST छूट की समाप्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करती है। दिव्यांगजन अधिकार अधिकिनियम, 2016 सरकार को दिव्यांगों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने का दायित्व देता है, और GST छूट की समाप्ति इस दायित्व के विपरीत प्रतीत होती है।
GST परिषद की भूमिका और निर्णय प्रक्रिया
GST परिषद, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के प्रतिनिधि शामिल हैं, कर नीतियों में संशोधन के लिए जिम्मेदार है। छूट समाप्त करने का निर्णय परिषद की बैठक में लिया गया था, लेकिन सार्वजनिक रिकॉर्ड्स से पता चलता है कि इस पर व्यापक विचार-विमर्श नहीं हुआ था। क्या परिषद ने दिव्यांग समुदाय के हितों को पर्याप्त रूप से ध्यान में रखा, या फिर यह निर्णय जल्दबाजी में लिया गया?
कानूनी विशेषज्ञों का तर्क है कि ऐसे नीतिगत परिवर्तनों में पारदर्शिता और हितधारकों की सहमति आवश्यक है। यदि छूट समाप्ति का आधार आर्थिक है, तो क्या सरकार ने वैकल्पिक सहायता तंत्र विकसित किए हैं? इन सवालों के जवाब अदालती कार्यवाही में सामने आने की उम्मीद है।
अंतरराष्ट्रीय मानकों और भारत के दायित्व
भारत ने संयुक्त राष्ट्र के दिव्यांगजन अधिकार समझौते (UNCRPD) पर हस्ताक्षर किए हैं, जो दिव्यांगों के लिए पहुंच और समावेशन को बढ़ावा देने का वचन देता है। GST छूट की समाप्ति इस समझौते के सिद्धांतों के विपरीत हो सकती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंताएं उठ सकती हैं। क्या भारत अपने वैश्विक दायित्वों को पूरा कर रहा है?
सार्वजनिक प्रतिक्रिया और भविष्य की संभावनाएं
इस मामले ने सिविल सोसाइटी समूहों, दिव्यांग अधिकार कार्यकर्ताओं और आम जनता में व्यापक प्रतिक्रिया उत्पन्न की है। कई संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए हैं और ऑनलाइन अभियान चलाए हैं, जिसमें सरकार से छूट बहाल करने की मांग की जा रही है। सोशल मीडिया पर हैशटैग जैसे #GSTChhootForDivyang तेजी से viral हो रहे हैं, जो जनता की भावनाओं को दर्शाते हैं।
संभावित परिणाम और अदालत का अगला कदम
Delhi हाई कोर्ट की अगली सुनवाई नवंबर 2025 में निर्धारित है, जहां केंद्र सरकार का जवाब जांचा जाएगा। संभावित परिणामों में छूट की बहाली, एक समझौता समाधान, या नीति में संशोधन शामिल हो सकते हैं। अदालत का फैसला न केवल इस मामले को, बल्कि भविष्य में समान नीतियों को भी प्रभावित करेगा। क्या यह मामला दिव्यांग अधिकारों के लिए एक मिसाल कायम करेगा?
वकील और सामाजिक कार्यकर्ता इस मामले को एक Turning Point मान रहे हैं। एक वकील ने कहा, ‘यह केवल कर छूट का मामला नहीं है, बल्कि दिव्यांगों की गरिमा और समानता का सवाल है। हमें उम्मीद है कि अदालत न्यायसंगत फैसला सुनाएगी।’
दीर्घकालिक निहितार्थ और सिफारिशें
भविष्य में, सरकार को दिव्यांग-अनुकूल नीतियों को मजबूत करने की आवश्यकता हो सकती है, जैसे कि GST छूट के विकल्पों पर विचार करना या अन्य वित्तीय सहायता योजनाएं शुरू करना। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि ऐसे निर्णयों में दिव्यांग समुदाय की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि नीतियां उनकी वास्तविक जरूरतों के अनुरूप हों।
अंत में, यह मामला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है: क्या विकास और राजस्व का पीछा करते हुए, हम समाज के सबसे कमजोर वर्गों की जरूरतों को अनदेखा कर सकते हैं? Delhi हाई कोर्ट का आगामी फैसला इस सवाल का जवाब दे सकता है, और देश भर में दिव्यांग नीतियों को नया रूप दे सकता है।
