दुर्गा चालीसा माँ दुर्गा की महिमा का गुणगान करने वाला एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसे भक्तगण शक्ति और श्रद्धा के साथ पढ़ते हैं। यह चालीसा माँ दुर्गा के नौ रूपों, उनकी शक्ति, करुणा और रक्षण के गुणों का वर्णन करती है। यहाँ प्रस्तुत है दुर्गा चालीसा अर्थ सहित — प्रत्येक चौपाई और दोहे का सरल हिन्दी अनुवाद, जिससे पाठ करते समय हर पंक्ति का भाव स्पष्ट रूप से समझा जा सके। इसका नियमित पाठ करने से भय, कष्ट, बाधा, और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है तथा माँ की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
नमो नमः दुर्गे सुख करनी।
नमो नमः दुर्गे दुःख हरनी॥
हे दुर्गा, जो सुख प्रदान करती हो, मेरा नमस्कार स्वीकार करो।
हे दुर्गा, जो दुःख हरने वाली हो, मेरा नमस्कार स्वीकार करो॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
तुम्हारा रूप निराकार प्रकाश है।
तुम्हारा उजियार तीनों लोकों में फैला हुआ है॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
तुम्हारे ललाट पर चंद्रमा है और मुख विशाल है।
तुम्हारी आँखें लाल और भृकुटि भयानक है॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
मातृत्व रूप में तुम अत्यंत सुंदर लगती हो।
जो तुम्हें देखता है, वह अत्यधिक सुख पाता है॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
तुमने संसार की शक्ति धारण की।
संबोधन हेतु अन्न और धन प्रदान किया॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
तुम अन्नपूर्णा बनकर जग का पालन करती हो।
तुम ही प्रारंभ से सुंदरी बालिका हो॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
प्रलय के समय तुमने सबका संहार किया।
तुम गौरी हो और शिव की प्रियतम हो॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
शिव और योगी तुम्हारे गुण गाते हैं।
ब्रह्मा और विष्णु रोज तुम्हारा ध्यान करते हैं॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
तुम सरस्वती का रूप धारण करती हो।
ऋषि-मुनियों को सुबुद्धि प्रदान करती हो॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
तुम नरसिंह का रूप धारण कर माता बन कर आईं।
स्तंभ को फाड़कर प्रकट हुईं॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
तुमने प्रह्लाद की रक्षा की।
हिरण्याक्षुप को स्वर्ग भेजा॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
तुमने लक्ष्मी का रूप धारण किया।
नारायण के अंग में समाहित हुईं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
तुम क्षीरसागर में खेल करती हो।
दयासागर बनकर हमें आशा प्रदान करती हो॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
तुम हिंगलाज में भवानी के रूप में पूजी जाती हो।
तुम्हारी महिमा असीम है, जिसकी व्याख्या नहीं हो सकती॥
मातंगी अरु धूमावती माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
तुम मातंगी और धूमावती माता हो।
भुवनेश्वरी बनकर सुख प्रदान करती हो॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
तुम भैरवी और जगतारिणी हो।
विभिन्न पीड़ा निवारण करती हो॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
तुम्हारा वाहन बाघ है, हे भवानी!
लंगूर वीर तुम्हें अगुवाई करते हैं॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
तुम्हारे हाथ में खप्पर (पात्र) और खड्ग (तलवार) सुसज्जित है।
जिसे देखकर मृत्यु भी डर जाती है॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
तुम्हारे पास अस्त्र और त्रिशूल सुसज्जित हैं।
शत्रु तुम्हें देखते ही हृदय में खून नहा लेते हैं॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुँलोक में डंका बाजत॥
तुम नगरकोट पर विराजमान हो।
तुम्हारी गूंज तीनों लोकों में सुनाई देती है॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
तुमने शुम्भ-निशुम्भ दानवों को मारा।
रक्तबीज को शंखनी (शंख) से संहारित किया॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
महिषासुर अत्यन्त अभिमानी था।
जिसके दुष्ट कार्यों से सम्पूर्ण पृथ्वी हिली॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
तुमने कराल कालिका का रूप धारण किया।
सेनाओं सहित दानवों का संहार किया॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
जब भी संतजन संकट में होते हैं।
तुम मातु के रूप में उनकी सहायता करती हो॥
आभा पुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
तुम्हारा तेज पूरी ब्रह्माण्ड में फैला हो।
तब सब प्राणी तुम्हारी महिमा से आनंदित हों॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
तुम्हारी ज्योति अग्नि की ज्वाला में है।
पुरुष और महिलाएं सदा तुम्हारी पूजा करें॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
जो प्रेम-भक्ति से तुम्हारा गुण गायें।
उन पर दुःख और दरिद्रता कभी न आए॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जो मनुष्य तुम्हें ध्यान से स्मरण करे।
उसका जन्म-मरण का चक्र टूट जाता है॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
योगी, देवता और मुनि तुम्हें पुकारते हैं।
उनका ध्यान योग तुम्हारी शक्ति के बिना संभव नहीं॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम क्रोध जीति सब लीनो॥
शंकर ने तप में तुम्हारा आचार्य बनाया।
तुमने काम और क्रोध को जीत कर समस्त दोष हरें॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
दिन-रात शंकर का ध्यान करता है।
ऐसे व्यक्ति को किसी भी काल की चिंता नहीं होती॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
जिन्हें तुम्हारे शक्ति रूप का रहस्य नहीं मिला।
वे शक्ति छोड़ने पर पश्चाताप करते हैं॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
जो शरणागत होते हैं, उनकी कीर्ति तुम्हारे गुण गाती है।
हे जगदम्ब भवानी, तेरो जय-जयकार हो॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
आदि जगदम्बा तुम्हें प्रसन्न हुई।
तुमने शीघ्रता से शक्ति प्रदान की॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरा॥
मोरी माता, दुख इतने घेर लेते हैं।
तुम बिन मेरा कौन दुःख हर सके॥
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपु मुरख मोही डर पावें॥
आशा-तृष्णा मुझको सताती रहती है।
मेरे शत्रु मूर्ख मुझे देखकर डरते हैं॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
हे महारानी, शत्रुओं का नाश करो।
मैं एक बार तुम्हें सुमिरूँ, भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निधाला॥
हे करुणामयी माता, कृपा करो।
ऋद्धि-सिद्धि और समृद्धि प्रदान करो॥
जब लगि जियऊं दया फल पाऊं।
तुम्हरे यश मैं सदा सुनाऊं॥
जब मेरी आत्मा तुम्हारी दया पाएगी।
मैं सदा तुम्हारे यश की गाथा सुनाऊँगा॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावें।
सब सुख भोग परम पद पावें॥
जो भी श्री दुर्गा चालीसा का गायन करता है।
वह सभी सुख भोगकर परम पद को प्राप्त होता है॥
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
अपने को तुम्हारा दास मानकर शरण में आया हूँ।
हे जगदम्ब भवानी, मुझ पर कृपा करो॥
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