गणेश चालीसा श्री गणेशजी, विघ्नहर्ता और बुद्धि-दायक देवता, की महिमा का संगीतमय स्तोत्र है। इसमें चालीस चौपाइयों के माध्यम से उनके स्वरूप, गुण, लीला और भक्तों पर उनकी कृपा का वर्णन है। गणेश चालीसा अर्थ सहित प्रस्तुत है—प्रत्येक चौपाई का सरल हिन्दी अनुवाद एवं भावार्थ, ताकि पाठ करते समय प्रत्येक पंक्ति का पूर्ण अर्थ समझा जा सके। इसका नियमित पाठ बाधा-विघ्नों का नाश करता है, समस्त कार्यों में सफलता और मंगल की प्राप्ति सुनिश्चित करता है तथा गणपति की विशेष कृपा प्रदान करता है।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
हे गणेश देव! आपकी जय हो, आपकी जय हो! माता पार्वती तथा पिता महादेव के आप प्रिय पुत्र हैं।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
हे देव! आपका शरीर वक्रतुण्ड रूपी है, आपकी शोभा सूर्यकोटि के समान तीव्र है। आप हमेशा मेरे सभी कार्यों में विघ्नरहित करें।
एकदन्त दयावन्त चारुभुज त्वमेकम ।
सर्वलोकनाथ विराजित सर्वजीवनप्रदम्॥
हे एक-दाँत, हे दयालु और चारभुज! आप सब लोकों के स्वामी हैं और सब प्राणियों को जीवन-बल प्रदान करते हैं।
महाकाय दिव्यकरुणा वरदानधिकारी ।
पद्मासनस्थितं शूलं कलानिधिं च भजे॥
हे महाकाय! दिव्य करुणा के भण्डार, वरदान दान करने वाले! मैं पद्मासन में विराजमान आपका और कला के भण्डार गणेश रूप का पूजन करता हूँ।
सिद्धिदं बुद्धिदं यशो दं सर्वदुःखनिवारणम् ।
असुरनाशकं तनुमध्यस्थं मयि स्थितम्॥
हे! आप सिद्धि, बुद्धि और यश देने वाले तथा सर्व दु:ख हरने वाले हैं। आप सब आसुरी शक्तियों का नाश करने वाले, मम हृदय में वास करने वाले।
गजानन वक्रलोचन पानिपद्मधर स्थापितम् ।
अक्षि सहस्त्रशोभितं हंकारविनाशनम्॥
हे गजानन! आपकी चार भुजाएँ हरे हुए हैं और हाथ-पैर पद्म पर विराजित हैं। आपके जटा-विक्षिप्त केश हैं, और आपका हास्य सब भय नाशक है।
विघ्नराज प्रभु सदा मम सुबुद्धि प्रदायक ।
दीनदयाल दयालुं सर्वदुःखनिवारणम्॥
हे विघ्नराज गणनाथ! आप सदा मुझे उत्तम बुद्धि प्रदान करते हैं तथा सब दुःख हरण करने वाले कृपालु हैं।
मूषकवाहन सदा सुखकर मंगलप्रद ।
शारदादेवराधितस्तव वंदना करुँ गतप्रद॥
हे मूषकवाहन! आप सुखद और मंगलप्रद हैं। शारदा आदि देवी ने जिनकी आराधना की, मैं भी आपकी वंदना करता हूँ, संकट मोचन।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वन्दे स्नानपुण्यसारभूतं पावकमलं चिरञ्जिविम्॥
हे! आप मन के समान तेजस्वी, मारुत (वायु) के समान गतिशील, इंद्रियग्रहण में विजयवान और बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं। मैं आपको वंदना करता हूँ जो स्नानसत्य का सार, पवित्र और अमर हैं।
दक्षिणायत्नपरायणं विश्वमारोग्यमार्तिनाशनम् ।
शतशः पूजितसिद्धसाधनं राजराजेश्वरम्॥
हे! आप दान का प्रयत्न करने में विशेष, विश्वरोगों का नाशक, शत-शत पूजित एवं साधकों को सिद्धि देने वाले हो, राजराजेश्वर।
जय देव जय देव जय मंगलमूल ह्रीं क्लीं फट् स्वः ।
भूतानन गणनायक शरणं प्रपद्येऽहं॥
हे देव! आपकी जय हो, आप मंगल के मूल हो। मैं सभी प्राणियों के गणाध्यक्ष गणनायक की शरण में आता हूँ।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
हे गणेश देव! आपकी जय हो, आपकी जय हो! माता पार्वती तथा पिता महादेव के आप प्रिय पुत्र हैं।
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