माँ लक्ष्मी चालीसा

अर्थ सहित – सम्पूर्ण पाठ

माँ लक्ष्मी चालीसा माता लक्ष्मी की महिमा का गुणगान करने वाला एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसे भक्तगण धन, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति के लिए श्रद्धा से पढ़ते हैं। यह चालीसा माता लक्ष्मी के सौंदर्य, करुणा, दानशीलता और सर्वसंपदा के अविनाशी स्वरूप का वर्णन प्रस्तुत करती है। यहाँ प्रस्तुत है माँ लक्ष्मी चालीसा अर्थ सहित — प्रत्येक चौपाई एवं दोहे का सरल हिन्दी अनुवाद, जिससे पाठ के प्रत्येक श्लोक का भाव स्पष्ट रूप से समझा जा सके। इस चालीसा का नियमित पाठ करने से धन-संपदा, सुख-समृद्धि तथा जीवन की सभी बाधाओं का नाश होता है और माता की अपरिमित कृपा बनी रहती है।

श्री दुर्गा चालीसा

जय जगदम्बि जगदम्बि भवानी, सुखदायिनी जगत्प्रिया लक्ष्मी॥

दीन दुखहारि सिद्धिदायिनी, करुणामयी नमोऽस्तु ते श्रीमति॥

जय हो जगदम्बा भवानी! जगत की प्रिय, सुख देने वाली माँ लक्ष्मी॥

दीन-दुखहरिणी, सिद्धि देने वाली, करुणामयी श्रीमति लक्ष्मी को मेरा नमन॥

सिंहासन गदाधर शशिधर, शरण तुम्हारी करौं वंदन॥

त्रिपुरारी विष्णु रूपा, हृदय-गह्वर सदा विराजन॥

तुम सिंहासन पर विराजित, गदा-शंख-धारी हो, तुम्हारी शरण में मेरा वंदन॥

त्रिपुरारी (शिव), विष्णु और ब्रह्मा सबका रूप हो, सदा मेरे हृदय में विराजमान रहो॥

चतुर्भुज धारिणी माता, कमलासन सुखदायिनी॥

अष्टबाहु विभूषण भरी, करुणामयी रूपे निधायिनी॥

चार भुजा धारण करने वाली माता, कमलासन पर विराजित सुखदायिनी॥

आठ आभूषणों से विभूषित, करुणामयी रूप की निधायक देवी॥

वरदहस्त वरप्रदाता, वशीकरण शप्तनाशिनी॥

रिद्धि-सिद्धि सम्पदा दै, दीनविनाशिनी धनिनी॥

वरदान देने वाले हाथों वाली, वशीकरण के शाप उन्मूलक देवी॥

रिद्धि-सिद्धि, सम्पदा प्रदान करने वाली, दीनों की विनाशिनी धनवती देवी॥

त्रिभुवनेश्वरी जगपति, परमात्मा परमपूज्ये॥

त्वं सर्वमंगलमांगल्ये, शिवे सर्वार्थसाधिके॥

त्रिभुवनेश्वरी, जगपति की पालिका, परमात्मा, सर्व पूज्य देवी॥

हे सर्व मंगलदायिनी, सब सिद्धि प्रदान करने वाली शिवे॥

शरण्ये त्र्यम्बके गौरी, नारायणि नमोऽस्तु ते॥

सर्वार्थसाधिके दात्री, भाग्यसम्पदा प्रदायिनी॥

त्र्यम्बक गौरी नारायणी, सर्वार्थ सिद्धि, भाग्य-सम्पदा देने वाली देवी को नमः॥

सभी लक्ष्यों की प्राप्ति कराने वाली, भाग्य को समृद्ध करने वाली माँ को प्रणाम॥

लक्ष्मणत्रय गुण-संपन्ना, दयाधरिणी जगदम्बिका॥

धनधान्य प्रदायिनी माता, सर्वशास्त्रज्ञा विभावरी॥

तीन लोकों में गुण संपन्न, दया की धारी जगदम्बिका देवी॥

धन-धान्य देने वाली, सभी शास्त्रों की ज्ञाता विभावरी देवी॥

कुबेर ध्याई अंबुज-पंकज, श्रीवरदा वरदायिनी॥

तुम ही रत्नपुष्पा विभूषित, ज्ञान-धर्म-सङ्घटन कर्तासीनी॥

कुबेर भी जो अंबुज-पुष्प (कमल) ध्याता है, दानवों की दायिनी, वर प्रदायिनी देवी॥

तुम ही रत्न और पुष्पों से विभूषित हो, ज्ञान-धर्म के संरक्षक की कर्तासीनी हो॥

पुरे वाणी निज गुण गातें, देव-दानव सब सकल शरणा॥

भवबंध हटावै अति शीघ्र, रति-भक्ति लहरायिनी॥

सभी देव-दानव तुम्हारे गुण गाते, सब तुम्हारी शरण में आते॥

जन्म-मरण का बंधन शीघ्र हटाने वाली, रति-भक्ति बढ़ाने वाली देवी॥

जो पठे लक्ष्मी चालीसा, दै सकल सुख अनूपा॥

दैन्य-दुःख कटहिं तिन्हहिं, धन-धान्य सब दहे दाता॥

जो यह लक्ष्मी चालीसा पढ़ता है, उसे अनोखे सभी सुख मिलते हैं॥

उसके दैन्य-दुःख कटते हैं, और वह धन-धान्य का दाता बनता है॥

कुबेर लक्ष्मी-सहित आए, दै ठाट-बाटी नभ-तरावे॥

आरोग्य-धन देहु हितकारी, भवबन्धन से विमोचक॥

कुबेर लक्ष्मी सहित आते हैं, और आकाश तक ठाट-बाट दिखाते हैं॥

स्वास्थ्य और धन हितकारी देने वाली, जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति देने वाली देवी॥

जो दिन-रात पाठ करै, लक्ष्मी करुणा दरसाए॥

सुख-समृद्धि अविचलित, परिवार-जीवन उजियारे॥

जो दिन-रात पाठ करता है, उसे लक्ष्मी की कृपा दृष्टि मिलती है॥

उसका सुख-समृद्धि अचल होता है, परिवार-जीवन उज्जवल होता है॥

जो ना पठे चालीसा, भवसागर तरावै॥

तेहि भवद्वार हृदये, लक्ष्मी-पद-पद्म वत्॥

जो इस चालीसा का पाठ नहीं करता, भवसागर तैरता रहता है॥

उसके हृदय में भवलोक का द्वार खुला रहता है, लक्ष्मी के पद कमलवत् पूजित नहीं होते॥

संकट-तिमिर हरहुं माता, जग में ज्योति जगाए॥

भव-भय-हरिणी, रति-करुणा, सर्वदात्री नमोऽस्तु ते॥

हे माता! संकट और अंधकार दूर कर, जग में ज्योति जगाने वाली देवी॥

भव-भय हरिणी, रति-करुणा प्रदात्री, सभी दात्री, तुम्हें प्रणाम॥

त्रिविध सुखदायिनी माता, प्रेम-भक्ति तुम प्रदाना॥

श्रीवास्तव करुणामयी, परमार्थयोगिनी दाना॥

तीन प्रकार के सुख देने वाली माता, प्रेम-भक्ति प्रदान करने वाली देवी॥

श्रीवास्तव (श्रीवृद्धि) करुणामयी, परमार्थ की योगिनी, परोपकार दाता देवी॥

जो करै हृदय से स्मरण, मङ्गलपूर्ण जागरण॥

तिन पर कृपा बरसावै, दुर्विद्या-दुष्टि विनाशिनी॥

जो हृदय से स्मरण करता है, उसे मंगलमय जागरण की अनुभूति होती है॥

उस पर देवी की कृपा बरसती है, दुर्बुद्धि और दुश्चिन्ताओं को नष्ट करने वाली देवी॥

श्री-स्तुति जीति ललित, सर्वविघ्न विघटक सुचरी॥

सर्वार्थसाधिकेश्वरी, लक्ष्मी लक्ष्मी जगदंबिका॥

श्री-स्तुति से ललित, और सभी विघ्नों को हराने वाली सुचरी देवी॥

सभी लक्ष्यों की सिद्धिदात्री लक्ष्मी जगदम्बिका देवी॥

त्रिलोचन महेश-योगिनी, त्रिनेत्र शिवशक्ति धारा॥

भवबन्धन छिनाई तुम, सर्वसिद्धि दै अनंत उद्धारा॥

त्रिलोचन महेश (शिव) की योगिनी, त्रिनेत्र और शिवशक्ति धारण करने वाली देवी॥

तुम जन्म-मरण के बंधन छीन लेती हो, अनंत उद्धार स्वरूप, सर्वसिद्धि देने वाली देवी॥

अन्नपूर्णा जगत्पाला, प्रभु-कृपा अति निराली॥

योगी-जन तुम्हरे चरणों, लखि-लखि होय सुख समाली॥

अन्नपूर्णा जगत का पालन करने वाली, प्रभु की अति निराली कृपा देवी॥

योगीजन तुम्हारे चरणों को देखकर अनंत सुखों को प्राप्त होते देखते हैं॥

जो डरया अभागा भव, लक्ष्मी कलियुग-पताका॥

तिन्हहिं तुम दया दृष्टि, धन-वैभव सब समेटना॥

जो कलियुग का अभागा भयभीत रहता है, उस पर लक्ष्मी का कलंक लिपटा है॥

उन पर तुम्हारी दया दृष्टि पड़े, और वह सब धन-वैभव प्राप्त करे॥

देहि लक्ष्मी ददात्री भव, परित्राण परमपदिनी॥

जय जय जय जगदंबिका, भवानी हृदये वसिनी॥

हे भवानी! मुझे लक्ष्मी प्रदान करो, सर्वपरित्राण और परमपदिनी देवी॥

जय-जय-जय जगदंबिका भवानी, मेरे हृदय में सदा वसने वाली देवी॥

संकट-दिन-रात पाठ करै, लक्ष्मी-माता दयालु छाई॥

दौलत-संपदा विभूषित, भवबंधन छिंडै सारी॥

जो दिन-रात इस चालीसा का पाठ करता है, उस पर करुणामयी माता लक्ष्मी की कृपा रहती है॥

वह दौलत-सम्पदा से विभूषित होता है, और सारे भवबंधन से मुक्त हो जाता है॥

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