ओम जय शिव ओंकारा एक अत्यंत प्रसिद्ध और श्रद्धापूर्ण भजन है जो भगवान शिव की आराधना के लिए गाया जाता है। यह भजन हर शिव भक्त के हृदय में विशेष स्थान रखता है। इसमें शिवजी की महिमा का वर्णन करते हुए उनके विभिन्न रूपों की स्तुति की जाती है।
इस लेख में, हम आपको इस पवित्र भजन के बोल प्रस्तुत करेंगे और इसके महत्व पर चर्चा करेंगे। शिव भक्तों के लिए, यह भजन उनकी भक्ति को प्रकट करने और भगवान शिव से जुड़ने का माध्यम है।
ओम जय शिव ओंकारा भजन
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव…॥
एकानन चारचरण, पंचानन राजे।
हंसासन गरुड़ासन, वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव…॥
भुजंगधर त्रिशूलधर, डमरू मधुर बाजे।
सोहे मुण्डमाल तन, कंठ नागराजे॥ ओम जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीतमबर, बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक, भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु, चंद्र विलसित माथे।
कनकवदन धारी, देव दिव्य ज्योति साथे॥ ओम जय शिव…॥
धूप दीप फल मीवा, पूजे नित नारद।
शिवाय नंदी, विष्णु नंदी, भजते सदा अर्धनारद॥ ओम जय शिव…॥
शिव चतुर्दश भुजधारी, चन्द्र रवी नयन में।
हर हर हर महादेव, तांडव शुभकरण में॥ ओम जय शिव…॥
त्रिपुरारी नीलकंठ, शिव शम्भु कैलासी।
जटा मुकुट में गंगा बहती, स्वर सुरा बासी॥ ओम जय शिव…॥
शिवशक्ति के रूप महादेव, शरणागत जन हितकारी।
करुणा सिंधु जग पालन करते, दुःख को हरते भारी॥ ओम जय शिव…॥
जय शिव जय शिव जय शिव, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव…॥
भजन का गहराई से भावार्थ
इस भजन में भगवान शिव के विभिन्न नाम, रूप, और लीलाओं का वर्णन किया गया है। आइए इसे विस्तार से समझें:
- “ओम जय शिव ओंकारा”
यह शिवजी के “ओंकार” रूप की स्तुति करता है। ओंकार (ॐ) को ब्रह्मांड की ध्वनि और हर सृजन का मूल माना गया है। - “एकानन चारचरण, पंचानन राजे”
यहाँ भगवान शिव के विभिन्न रूपों की बात की गई है। पंचानन का अर्थ है पाँच मुख वाले शिव, जो ज्ञान, शक्ति, और चेतना के प्रतीक हैं। - “भुजंगधर त्रिशूलधर”
भगवान शिव को सर्पों का गहना पहनने वाले और त्रिशूल धारण करने वाले देवता के रूप में वर्णित किया गया है। यह उनके साहस और विनाशकारी शक्ति का प्रतीक है। - “धूप दीप फल मीवा, पूजे नित नारद”
इसमें भक्तों द्वारा शिव की साधारण और सरल पूजा का उल्लेख है। भगवान शिव को केवल सच्चे मन से अर्पित की गई भक्ति प्रिय है। - “त्रिपुरारी नीलकंठ”
शिव को त्रिपुरारी कहा गया है क्योंकि उन्होंने त्रिपुरासुर का वध किया था। नीलकंठ का उल्लेख समुद्र मंथन की कथा से जुड़ा है, जब शिव ने हलाहल विष को ग्रहण किया था।
भजन का महत्व शिव भक्तों के लिए
- आध्यात्मिक शांति और शक्ति
यह भजन भगवान शिव के प्रति असीम भक्ति व्यक्त करता है। इसे गाने से मन को शांति मिलती है और आंतरिक शक्ति का अनुभव होता है। - साधना का माध्यम
इस भजन को सुबह और शाम के समय गाने से शिवभक्त अपनी साधना को और अधिक प्रबल बना सकते हैं। - पवित्र ऊर्जा का संचार
भजन की धुन और शब्द भगवान शिव के आशीर्वाद का आभास कराते हैं। इसे सुनने और गाने से सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है।
भजन गाने का सही समय और विधि
- सुबाह के समय
भजन का गायन ब्रह्म मुहूर्त में किया जाए तो इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। - पूजा के दौरान
इसे शिवलिंग के समक्ष धूप और दीप जलाकर गाने से वातावरण और भी पवित्र हो जाता है। - संकट के समय
यदि आप किसी समस्या या चिंता में हैं, तो इसे गाना आपके मन को बल और समाधान की दिशा प्रदान करता है।
निष्कर्ष
“ओम जय शिव ओंकारा” भजन केवल एक गीत नहीं है, बल्कि यह भक्त और भगवान शिव के बीच गहरे आध्यात्मिक संबंध का एक सेतु है। इसकी पंक्तियाँ भगवान शिव के अद्भुत स्वरूप और उनकी महिमा का गान करती हैं। इसे गाने या सुनने से न केवल मन को शांति मिलती है, बल्कि भगवान शिव की कृपा भी प्राप्त होती है।
शिवभक्तों के लिए यह भजन उनकी आराधना का एक अनिवार्य हिस्सा है। इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाकर आप अपने जीवन में शांति और सकारात्मकता का अनुभव कर सकते हैं।