सरस्वती चालीसा


अर्थ सहित – सम्पूर्ण पाठ

सरस्वती चालीसा माता सरस्वती, ज्ञान, कलाओं एवं संगीत की देवी, की महिमा का गुणगान करने वाला एक मधुर एवं प्रभावशाली स्तोत्र है। इसमें चालीस चौपाइयों के माध्यम से माता सरस्वती के विभूतियों, उनकी श्रृंगार-सज्जा, वरदानों एवं दया का विस्तृत वर्णन है। सरस्वती चालीसा अर्थ सहित प्रस्तुत है—प्रत्येक चौपाई का सरल हिन्दी अनुवाद एवं भावार्थ, ताकि पाठ करते समय प्रत्येक पंक्ति की गहन भावना स्पष्ट हो। नियमित रूप से इसका पाठ मानसिक अज्ञानता, अलसता और बाधाओं का नाश करता है तथा प्रेरणा, सृजनात्मकता और सफलता की दिव्य कृपा प्रदान करता है।

श्री दुर्गा चालीसा

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।

बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥

जनक की जननी के पद कमल की धूल मैं अपने मस्तक पर धारण करता हूँ।

हे माता सरस्वती, मैं आपकी वंदना करता हूँ, मुझे बुद्धि और बल देने वाली बनें॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।

दुष्टजनों के पाप को, मातु तु ही अब हंतु॥

आपकी महिमा पूरे जगत में फैली हुई, असीम और अनंत है।

हे माता, पापी दुष्टों के पापों का नाश अब केवल आप ही कर सकती हैं॥

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।

जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥

हे माताजी, जिनके पास सर्वत्र फैली बुद्धि और शक्ति है, आपकी जय हो।

हे सर्वज्ञ, अमर और अजर-अमराविनाशी देवी, आपकी जय हो॥

जय जय जय वीणाकर धारी।

करती सदा सुहंस सवारी॥

वीणा धारण किए हुए आप, आपकी असीम जय हो।

जो सदा सुहंस (हंस) की सवारी करती हैं, आपकी अलदीन जय हो॥

रूप चतुर्भुज धारी माता।

सकल विश्व अन्दर विख्याता॥

चतुर्भुज रूप धारण करने वाली माता, आपकी जय हो।

आपका महिमा सकल विश्व में विख्यात है॥

जग में पाप बुद्धि जब होती।

तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥

जब संसार में पाप और अविद्या बढ़ जाती है,

तब धर्म की ज्योति मंद पड़ जाती है॥

तब ही मातु का निज अवतारी।

पाप हीन करती महतारी॥

तब आप अपना अवतार धारण करती हैं,

और सारी महिमा करके पापों का नाश करती हैं॥

वाल्मीकि जो हत्यारा था।

तव प्रसाद से बना आया॥

जो कभी वाल्मीकि पापी था,

वह आपके प्रसाद से महान कवि बना॥

रामचरित जो रचे बनाई।

आदि कवि की पदवी पाई॥

उसने रामचरित का रचना की,

और आदि कवि की उपाधि प्राप्त की॥

कालिदास जो भये विख्याता।

तेरी कृपा दृष्टि से माता॥

कालिदास जो प्रसिद्ध हुए,

वह आपकी दयामयी दृष्टि से ही बने॥

तुलसी सूर आदि विद्वाना।

भये और जो ज्ञानी नाना॥

तुलसीदास, सूरदास और अन्य विद्वान हुए,

अन्य कई ज्ञानी भी हुए आपके आशीर्वाद से॥

तिन्ह न और रहेउ अवलंबा।

केवल कृपा आपकी अंबा॥

वे और किसी पर नहीं टिका,

केवल आपकी कृपा से ही टिके॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी।

दुखित दीन निज दासहि जानी॥

हे भवानी, उसी पर कृपा करें,

जो दुखी और दीन है और आपका दास है॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई।

सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥

जो पुत्रहीन हैं और व्याकुल हैं,

वे सभी आपकी पूजा करें॥

करै पाठ नित यह चालीसा।

होय पुत्र सुंदर गुण ईशा॥

जो प्रतिदिन यह चालीसा पढ़ता है,

उसे सुंदर पुत्र और गुणों की प्राप्ति होती है॥

धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।

संकट रहित अवश्य हो जावै॥

जो धूप-दीप-नैवेद्य चढ़ाता है,

वह अवश्य संकटमुक्त हो जाता है॥

भक्ति मातु की करैं हमेशा।

निकट न आवै ताहि कलेशा॥

जो सदा माता की भक्ति करती है,

उसके पास कष्ट कभी नहीं आता॥

बंदी पाठ करें सत बारा।

बंदी पाश दूर हो सारा॥

जो बार-बार यह पाठ करता है,

उसकी सभी बंधनरहित हो जाते हैं॥

रामसागर बाँधि हेतु भवानी।

कीजै कृपा दास निज जानी॥

हे भवानी, रामसागर के लिए ऐसा आचरण करें,

और आपके दास पर कृपा करें॥

मातु सूर्यकान्ति तव, अन्धकार मम रूप।

डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥

हे माता, आपकी किरणों से मेरा अंधकारित रूप प्रकाशित हो,

और मुझ अभागे को नरक की गहराइयों से बचाकर रखें॥

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।

रामसागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥

हे सरस्वती माता, मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें,

और रामसागर जैसे अधम (दीन) को अपना आशीर्वाद दें॥

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