शनि चालीसा भगवान शनिदेव की महिमा का गुणगान करने वाला एक प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसे विशेषतः शनि दोष निवारण और जीवन की अनिश्चितताओं से रक्षा हेतु श्रद्धा से पढ़ा जाता है। इसमें शनि देव के दयान्वित एवं न्यायप्रिय रूप, उनकी पीड़ा दूर करने वाली महिमा, और दोषों का हरण करने वाले गुणों का विस्तृत वर्णन है। यहाँ प्रस्तुत है शनि चालीसा अर्थ सहित — प्रत्येक चौपाई एवं दोहे का सरल हिन्दी अनुवाद, जिससे पाठ के प्रत्येक श्लोक का भाव स्पष्ट रूप से समझा जा सके। इस चालीसा का नियमित पाठ करने से शनि से संबंधित बाधाएँ, रोग-दोष एवं विलम्ब दूर होते हैं तथा भगवान शनि की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
नमो नमो शनैश्चर महाराज, भवसागर तरनिधि दाता॥
नमो नमो शनैश्चर प्रभो, प्रदोष दोषहरिदाता॥
नमस्कार है शनिदेव महाराज को, जो संसार सागर को पार लगाने वाले दाता हैं॥
नमस्कार है शनैश्चर प्रभु को, जो सभी प्रदोषों और दोषों का नाश करने वाले हैं॥
जयति जयति जय जयाप्त शनि, ज्येष्ठ यज्ञ देवता त्रिभुवन त्रनि॥
ओ शनि देव, आपकी जय-जयकार हो, आप सबसे बड़े यज्ञ देवता हैं और तीनों लोकों में प्रतिष्ठित हैं॥
दोष दोष पाप सब पिशाच, मिटावे शनि भव भव साच॥
जो भी दोष, पाप या शाप हों, शनि देव उन्हें मिटाकर सुखद भविष्य प्रदान करते हैं॥
चक्र उदनीत चक्र किंकर, करुणा सिंधु शरणहंकर॥
आप शनि देव चक्रधारी, असीम करुणा के सागर हैं, शरणागतों के उद्धारक हैं॥
रूप विशाल निरूप शब्द, भयभीत मन हरहु दुनिदरद॥
आपका रूप विशाल और अपार है, भयभीत हृदयों को आप दुनियादारी के दुखों से मुक्त करते हैं॥
दीन दुखी रणचंडी सुनि, शरणागत करहु कृपा गुणि॥
दीन-दुखियों की शरण में आकर आप गणनाओं से परे कृपा करते हैं॥
अष्टभुजा विभूषण भारी, खड्ग कमल धरा विभु द्वारा॥
आपके आठ हाथों में विभूषण हैं, खड्ग और कमल धारण की मुद्रा आपकी महिमा दर्शाती है॥
गदा धार विद्या प्रदाता, दानवीर करहु दुःख नाशक॥
आप गदा धारी और विद्या-दानकर्ता हैं, आप ही दुःख-शापों के नाशक हैं॥
शनि चलत संध्या समय, पाथेय पापी जन हरे रम्य॥
जब शाम के समय आप अपनी गति आरंभ करते हैं, तब आप पापियों का नाश करने आए प्रभावी देव हैं॥
कनकमौळि मुकुट विभूषण, कर करुणा अवन मनोहरुण॥
आप सोने की मणि के मुकुट और विभूषण धारण करते हैं, आपकी करुणा मनोहारी है॥
तारा दास सतत गावत, शनि दास हरहु दुख सतावत॥
आपके भक्त सतत आपका गुणगान करते हैं, शनि भक्तों से आप उनके दुख हटा देते हैं॥
दण्डनायक संभल दाता, दुष्ट दलन बहु निस्वाता॥
आप दण्डनायक हैं, दाता हैं और दुष्टों का नाशक भी हैं बिना भेदभाव के॥
शनि कृपा होय जो नरजन, तिन्ह पाए सुख धन वनटन॥
जिस पर शनि देव की कृपा स्थिर होती है, वह सुख, धन और वैभव प्राप्त करता है॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मुरति शनि वरेदन॥
आप संकट हरने वाले और मंगलमयी मूरत हैं, शनि वरदान स्वरूप जीवन सुखद बनाते हैं॥
शनि भक्त निरंतर जपे, संकट बाधा सब हरे अवले॥
जो शनि भक्त निरंतर जप करता है, उसके सभी संकट और बाधाएँ हटा देता है॥
जप जप शनि चालीसा पाठ, भवसागर से बंदन उताथ॥
जो शनि चालीसा का पाठ करता है, वह भवसागर के बन्धन से छूट जाता है॥
शनि देव के चरण पंकज, करहु सब दीन दुख तंज॥
शनि देव के चरणों की धूल से, हे देव, आप सब दीन-दुखियों का अंत करें॥
शनि दण्ड बिनु निवारण, शरणागत करहु उद्धारण॥
आपके दण्ड के बिना कोई दोष नहीं मिटता, शरणागतों का आप उद्धार करते हैं॥
मुहूर्त दोष करे जो कोई, शनि जप विनायक होई॥
जो कोई मुहूर्त दोष में शनि जप करता है, उसके दोष विनाश हो जाते हैं॥
चौदह वर्ष तक शाप संबल, शनि पूजन से कटहिं कल॥
चौदह वर्ष के शाप का भार शनि पूजन से कट जाता है॥
शनि पूजन प्रातः सवेरे, सब पाप कटै नित नितरे॥
प्रातः काल शनि पूजन से सभी पाप नित्य नष्ट होते हैं॥
शनि कृपा बनी अगर, भय क्लेश मिटे परिहर॥
यदि शनि देव की कृपा स्थिर हो, तो भय और क्लेश मिट जाते हैं॥
शनि कलत्र सदा धारि, मंगल मूल फल अपारि॥
शनि देव को सदा विधि पूर्वक पूजने से मंगल मूल फल असीम होते हैं॥
पाठ शनि चालीसा जो कोई, पावे फल अपार सोई॥
जो कोई शनि चालीसा का पाठ करता है, वह अपार फल प्राप्त करता है॥
शिष्या भव शनि कृपा भाग, भव भय ह्रास दूजो नाग॥
शनि देव की कृपा का भागी बनने से भव भय का नाश होता है॥
अंततः शनि भक्त कथन, सुख शांति पाए अलख आनन्द॥
अंत में शनि भक्त अपने कथन से सुख-शांति और अलौकिक आनंद प्राप्त करता है॥
शनि शरणागत कृपापात्र, करहु सब क्लेश विक्षार॥
नमो नमो शनैश्चर प्रभो, मंगल करें सदा सार॥
ओ शनि देव, शरणागत आपके कृपा पात्र हैं, उनके सभी क्लेश समाप्त करें॥
नमो नमो शनैश्चर प्रभु, आप सदा मंगलकारी रहिए॥
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