India ने संयुक्त राष्ट्र में उठाई सुधार की मांग, Jaishankar ने कहा- ‘यूएन 1945 में फंसा है’
New York, 16 अक्टूबर 2025: भारत के विदेश मंत्री S. Jaishankar ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक ऐतिहासिक भाषण देते हुए वैश्विक संस्था की मौजूदा संरचना पर सीधा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र अभी भी 1945 की मानसिकता में फंसा हुआ है और आधुनिक दुनिया की चुनौतियों से निपटने में पूरी तरह असमर्थ है। यह बयान उस समय आया जब भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए अपनी दावेदारी मजबूत कर रहा है। Jaishankar ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि वैश्विक शासन में बदलाव की जरूरत है, और भारत इसके लिए प्रतिबद्ध है।
Jaishankar के बयान ने उठाए गहरे सवाल
विदेश मंत्री के भाषण ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर तत्काल प्रतिक्रियाएं पैदा कीं। उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र आज भी 1945 में फंसा हुआ है, जबकि दुनिया 2025 में है। क्या यह संस्था आज की जटिल भू-राजनीतिक हकीकतों को समझ पा रही है?” इस टिप्पणी ने संयुक्त राष्ट्र के भीतर चल रही सुधार बहसों को नई गति दी है। Jaishankar ने जोर देकर कहा कि मौजूदा व्यवस्था विकासशील देशों के हितों को पर्याप्त रूप से प्रतिबिंबित नहीं करती, और यह असंतुलन वैश्विक स्थिरता के लिए खतरनाक है।
भारत की विदेश नीति में नए आयाम
यह घटना भारत की बदलती विदेश नीति रणनीति का एक महत्वपूर्ण संकेत है। पिछले एक दशक में, भारत ने अपने वैश्विक एजेंडे को और मजबूती से आगे बढ़ाया है। Jaishankar के भाषण ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत अब केवल एक उभरती हुई शक्ति नहीं, बल्कि एक परिपक्व वैश्विक नेता के रूप में स्थापित हो रहा है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सहित अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में सुधार की मांग को लगातार उठाया है, जिसे अब व्यापक अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिल रहा है।
संयुक्त राष्ट्र सुधार: भारत की प्रमुख मांगें
Jaishankar ने अपने भाषण में संयुक्त राष्ट्र के सुधार के लिए कई ठोस सुझाव पेश किए। उन्होंने सुरक्षा परिषद के विस्तार पर जोर दिया, ताकि अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के देशों को उचित प्रतिनिधित्व मिल सके। उन्होंने कहा कि वीटो पावर का इस्तेमाल सुधार प्रक्रिया में एक बड़ी बाधा बना हुआ है। क्या वास्तव में पांच देशों को पूरी मानवता के भविष्य पर निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए? यह सवाल उन्होंने उठाया, जिसने कई सदस्य देशों का ध्यान खींचा।
वैश्विक प्रतिक्रियाएं और समर्थन
Jaishankar के बयानों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। Germany, Japan और Brazil जैसे देशों ने भारत की स्थिति का समर्थन किया है, जो खुद भी सुरक्षा परिषद सुधार के पक्षधर हैं। एक जर्मन प्रवक्ता ने कहा, “भारत का रुख तार्किक और समयोचित है। हमें एक अधिक समावेशी वैश्विक व्यवस्था की आवश्यकता है।” हालांकि, कुछ स्थायी सदस्यों ने इस पर संशय व्यक्त किया है, जो मौजूदा संरचना में बदलाव के पक्ष में नहीं हैं।
भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका
इस घटना ने भारत की बढ़ती वैश्विक प्रासंगिकता को रेखांकित किया है। आर्थिक विकास, तकनीकी innovation, और कूटनीतिक कौशल के मामले में भारत ने अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाया है। Jaishankar ने अपने भाषण में इस बात पर जोर दिया कि भारत न केवल अपने हितों, बल्कि वैश्विक शांति और विकास के लिए भी प्रतिबद्ध है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और डिजिटल governance जैसे मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को मजबूत करने का आह्वान किया।
ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान वास्तविकताएं
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुई थी, जब विश्व की राजनीतिक और आर्थिक संरचना आज से बिल्कुल अलग थी। उस समय, अधिकांश एशियाई और अफ्रीकी देश औपनिवेशिक शासन के अधीन थे। Jaishankar ने इस ऐतिहासिक असंतुलन की ओर इशारा करते हुए कहा कि आज की बहुध्रुवीय दुनिया में यह व्यवस्था अप्रासंगिक हो चुकी है। क्या 80 साल पुरानी संरचना आज की जटिलताओं का समाधान कर सकती है? यह प्रश्न उन्होंने उठाया, जो वैश्विक बहस का केंद्र बन गया है।
भारत के लिए इसके निहितार्थ
इस बयान का भारत की विदेश नीति पर गहरा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। यह न केवल संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थिति को मजबूत करेगा, बल्कि अन्य विकासशील देशों के साथ उसके गठबंधन को भी प्रोत्साहित करेगा। Jaishankar ने स्पष्ट किया कि भारत की यह स्थिति अस्थायी नहीं, बल्कि एक दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि भारत वैश्विक शासन में न्यायसंगत सुधार के लिए लगातार प्रयास करता रहेगा।
भविष्य की दिशा और संभावित परिणाम
विश्लेषकों का मानना है कि Jaishankar के इस बयान ने संयुक्त राष्ट्र सुधार की बहस को एक नई गति दी है। आने वाले महीनों में, इस मुद्दे पर और अधिक चर्चा होने की उम्मीद है, खासकर जब 2026 में संयुक्त राष्ट्र की सामान्य बहस होगी। भारत इस मामले पर अपने सहयोगी देशों के साथ मिलकर काम करने की योजना बना रहा है। क्या यह पहल वैश्विक शासन में एक बड़े बदलाव की शुरुआत साबित होगी? यह देखना बाकी है, लेकिन भारत ने अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने Jaishankar के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि संस्था लगातार सुधार के लिए प्रयासरत है। हालांकि, उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि प्रक्रिया धीमी है। कई छोटे देशों ने भारत के रुख का स्वागत किया है, क्योंकि वे मानते हैं कि इससे उनकी आवाज को मजबूती मिलेगी। एक दक्षिण अफ्रीकी प्रतिनिधि ने कहा, “भारत ने वह कहा है जो कई देश सोतकरते हैं, लेकिन कहने का साहस नहीं कर पाते।”
निष्कर्ष: एक नए युग की शुरुआत?
S. Jaishankar के इस ऐतिहासिक भाषण ने न केवल भारत की विदेश नीति, बल्कि पूरी वैश्विक राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। यह स्पष्ट है कि भारत अब वैश्विक मंचों पर मामूली भूमिका नहीं, बल्कि एक नेता के रूप में उभर रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुधार की मांग अब केवल एक बहस नहीं, बल्कि एक जरूरी आवश्यकता बन गई है। भारत की इस सक्रिय भूमिका से अंतरराष्ट्रीय संबंधों के भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
इस पूरे episode ने यह साबित किया है कि भारत न केवल अपने राष्ट्रीय हितों, बल्कि वैश्विक न्याय और समानता के लिए भी प्रतिबद्ध है। Jaishankar के शब्दों ने एक ऐसी बहस छेड़ दी है जो आने वाले वर्षों तक चलने की उम्मीद है। क्या संयुक्त राष्ट्र अपने आप को आधुनिक बना पाएगा? यह प्रश्न अब पूरी दुनिया के सामने है, और भारत इसका जवाब तलाशने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
