विष्णु चालीसा भगवान विष्णु की महिमा का गुणगान करने वाला एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसे भक्तजन संसार के पालनहार, धारण करने और उद्धार करने वाले प्रभु की भक्ति में पढ़ते हैं। यह चालीसा श्रीहरि के दशावतार, उनका विराट स्वरूप, अनंत करुणा और अनुकम्पा के गुणों का विवरण प्रस्तुत करती है। यहाँ प्रस्तुत है विष्णु चालीसा अर्थ सहित — प्रत्येक चौपाई एवं दोहे का सरल हिन्दी अनुवाद, जिससे पाठ के प्रत्येक श्लोक का भाव स्पष्ट रूप से समझा जा सके। इस चालीसा का नियमित पाठ करने से जीवन की सभी विघ्न-बाधाएँ विघटित होती हैं, भौतिक एवं आध्यात्मिक समृद्धि होती है तथा भगवान विष्णु की अटूट कृपा प्राप्त होती है।
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधार॥
बरनऊँ विष्णु चरित्र पावन, जो दायकु फल चार॥
श्रीगुरु के चरणों की धूल से मैं अपने मन की अस्वच्छता दूर करता हूँ।
मैं उस विष्णु के पावन चरित्र का वर्णन करता हूँ, जो चारों प्रकार के फल (धार्मिक, अधार्मिक, सांसारिक, मोक्ष) प्रदान करता है॥
पदनिधि कारागार, सुरनिधि विशाल॥
जनार्दन जगन्नाथ, जगत्पाल अचल॥
विष्णु पदकमल समुद्र के समान असीम हैं, देवों के खजाने जितने विशाल हैं॥
जनार्दन और जगन्नाथ नाम से विख्यात, वे जगत के स्थिर पालक हैं॥
त्रिलोचन महेश-योगिनी, त्रिनेत्र त्र्यंबक धारक॥
गोविंद गोपाल धाम, प्रेमसिंधु नराधारक॥
वे त्रिनेत्री महेश (शिव) की शक्ति सम्पन्न योगिनी हैं, त्रिनेत्र धारण करने वाले हैं॥
गोविंद और गोपाल रूप में वे हमारा पोषण करते हैं, प्रेम के महासागर हैं॥
धन्य धन्य विष्णु भजन्, यश पद्म पद्म धारक॥
दाता धर्म सुखद, कालकूट हर्तारक॥
विष्णु का स्मरण धन्य-धन्य है, वे पद्मकमल जैसे यश के स्वामी हैं॥
वे धर्म, सुख के दाता हैं, कालकूट विष का नाश करने वाले हैं॥
गोवर्धन धरण धाम, गिरिधर हरिण कामक॥
वामन विशाल देह, पाद द्वितीय करुणामयक॥
गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले गिरिधर हैं, कामनाओं के हरिण हैं॥
वामन अवतार में विशाल देह लिए, उनके द्वितीय चरण कृपा से सबको उद्धार करते हैं॥
मधुसूदन द्रुतहार, सौम्य स्वरूप महानक॥
वासुदेव रणजीत, अच्युत शाश्वतक॥
मधुसूदन ने मदहोश करनेवाले दानवों का संहार किया, रूप में अत्यंत सौम्य और महान हैं॥
वासुदेव युद्धों में विजयी, अच्युत शाश्वत अविनाशी हैं॥
अनन्तधाम अनन्तशक्त, अनन्तभक्तिनिधानक॥
श्रद्धा समेत जो भजे, तस्य संकट निधानक॥
अनंत लोकों के स्वामी, अनंत शक्तियों के धारक, अनंत भक्तों के शरणस्थ हैं॥
विश्वास सहित जो उनका भजन करता है, उसके सारे संकट समाप्त कर देते हैं॥
जयति जयति जगदम्ब, पदे पदे गुण अपारक॥
जपि जपि नाम तुम्हारो, विघ्न बाधा सब संहारक॥
विष्णु की जय-जयकार हो, उनके पदपद गुण अपार हैं॥
जो निरंतर उनका नाम जपता है, वे सब विघ्न-बाधाएँ हर देते हैं॥
भवबंधहरणकर, मृत्यु दमन स्थानक॥
पदमेपादमन, जनमरण रक्षक॥
वे जन्म-मरण के बंधनहरण करने वाले, मृत्यु को भी दमन करने वाले हैं॥
वे पादप पाद (दो चरणों) में स्थित, जन्म-मरण के चक्र से रक्षक हैं॥
भक्ति भाव जो धरै, विष्णु वास हर पुरानक॥
सदा प्रसन्न होइ, मनहर हरिब्रंद गिरानक॥
जो भक्तिपूर्वक विष्णु का ध्यान करता है, उसे पुराणों में वास बताया गया है॥
वे सदा प्रसन्न रहते हैं, हरिवंश (हरि-परिवार) में सौभाग्य प्रदाता हैं॥
रामलक्ष्मण सीता सहित, रघुवंश गयनारक॥
हनुमान सदा दरसन, संकट मोचन उपकारक॥
वे राम-लक्ष्मण-सीता सहित रघुवंश का आधार हैं॥
हनुमान का सदा दर्शन कर, संकटमोचन महादान करते हैं॥
माया विप्पिनाशक, प्रकाशित कल्याणक॥
जो जन तुम्हें ध्यावत, भवसागर तरणक॥
वे मायाजाल का नाश करने वाले, कल्याण की ज्योति जगाने वाले हैं॥
जो उन्हें ध्यानपूर्वक स्मरन करता है, वे भवसागर से पार कराते हैं॥
दीनदु:ख समहर्ता, करुणामय अपनारक॥
करहु कृपा अनुकूल, मनसो राम करारक॥
वे दीन-दुखियों को समेटने वाले, करुणा के महासागर हैं॥
वे मन से कृपा करके राम का ध्यान कराने वाले हैं॥
जो विष्णु चालीसा पठे, हिय भरे अमृत सारक॥
तीन योन त्रास मिटै, भवबंधन सब उधारक॥
जो विष्णु चालीसा का पाठ करता है, उसके हृदय में अमृत समान रस भरता है॥
तीन लोकों का भय मिटा देता है, संसारिक बंधनों से वह मुक्त होता है॥
श्री विष्णु चालीसा जो कोई, श्रद्धा से गुण गान करे॥
अति-फल पावे संसार में, विष्णु कृपा जो धार करे॥
जो श्रद्धा सहित विष्णु चालीसा का गुणगान करता है, उसे संसार में असीम फल मिलते हैं॥
विष्णु की कृपा निरंतर जो प्राप्त करे, वह सब कष्टों से मुक्त रहता है॥
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