भारतीय राजनीति में “एक देश, एक चुनाव” जैसे विचार को लेकर चर्चा और बहस जारी है। इस विषय पर संसद में पेश किए गए 129वें संविधान संशोधन विधेयक की समीक्षा के लिए जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) का गठन हुआ है। लोकसभा और राज्यसभा के प्रमुख सांसदों को इस समिति में शामिल किया गया है।
लोकसभा से चुने गए 21 और राज्यसभा से चुने जाने वाले 10 सांसदों में कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा, मनीष तिवारी और सुखदेव भगत सिंह जैसे बड़े नाम शामिल हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से बांसुरी स्वराज, संबित पात्रा और अनुराग ठाकुर जैसे प्रभावशाली नेता इस समिति का हिस्सा बने हैं। इसके अलावा, तृणमूल कांग्रेस (TMC) से कल्याण बनर्जी और अन्य विपक्षी दलों से भी सांसदों को इस समिति में शामिल किया गया है।
प्रियंका गांधी की पहली महत्वपूर्ण भूमिका
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने हाल ही में वायनाड से अपनी पहली संसदीय स्पीच दी, जो “संविधान पर बहस” के विषय पर आधारित थी। यह उनके राजनीतिक करियर का एक अहम पड़ाव है, और JPC में उनकी भागीदारी उनके बढ़ते राजनीतिक प्रभाव को दर्शाती है। समिति को अगले संसदीय सत्र के अंतिम सप्ताह के पहले दिन तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी।
JPC में सांसदों का चयन और विधेयक का विवाद
एक देश-एक चुनाव विधेयक को कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 17 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया। इस विधेयक को पेश करने के दौरान इलेक्ट्रॉनिक और मैनुअल वोटिंग का सहारा लिया गया। बिल के पक्ष में 269 वोट पड़े, जबकि विपक्ष में 198 सांसदों ने इसका विरोध किया। भाजपा ने लोकसभा में अनुपस्थित 20 सांसदों को कारण बताओ नोटिस भेजने का निर्णय लिया है।
विपक्ष ने इस विधेयक पर तीखा विरोध जताते हुए इसे लोकतंत्र और संघीय ढांचे के लिए चुनौती करार दिया। अमित शाह ने सदन में यह स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधेयक को JPC के पास भेजने का सुझाव दिया था, ताकि इसे व्यापक विचार-विमर्श के बाद अंतिम रूप दिया जा सके।
एक देश-एक चुनाव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में एक साथ होते थे। 1952, 1957, 1962 और 1967 में देश ने यह परंपरा देखी। हालांकि, 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाएं समय से पहले भंग हो गईं, और 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इसके बाद से लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।
सरकार अब “एक देश-एक चुनाव” की परंपरा को पुनः स्थापित करना चाहती है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर, 2023 को गठित एक उच्चस्तरीय समिति ने इस विचार पर 14 मार्च, 2024 को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी थी।
संविधान संशोधन के संभावित बदलाव
एक देश-एक चुनाव को लागू करने के लिए संविधान में अनुच्छेद 82(A) जोड़ा जाएगा और अनुच्छेद 83, 172, और 327 में संशोधन किया जाएगा। ये संशोधन लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए कानूनी आधार प्रदान करेंगे। प्रस्ताव के अनुसार:
- नए अनुच्छेद 82(A): लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का कानूनी प्रावधान होगा।
- अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन: संसद और विधानसभाओं का कार्यकाल तय करने के लिए।
- अनुच्छेद 327 का संशोधन: चुनाव से जुड़े कानून बनाने में संसद की शक्ति को स्पष्ट करने के लिए।
सरकार ने विधेयक में प्रावधान किया है कि आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख पर राष्ट्रपति एक अधिसूचना जारी करेंगे, जिसे “अपॉइंटेड डेट” कहा जाएगा।
एक देश-एक चुनाव का उद्देश्य और लाभ
“एक देश-एक चुनाव” का उद्देश्य समय, धन और संसाधनों की बचत करना है। बार-बार चुनाव होने से न केवल प्रशासनिक कामकाज प्रभावित होता है, बल्कि चुनावी खर्च भी बढ़ता है। इसके अलावा, इस प्रस्ताव से पूरे देश में चुनावी प्रक्रिया अधिक संगठित और सुगम हो सकती है।
FAQs
1. एक देश-एक चुनाव का मुख्य उद्देश्य क्या है?
इसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है ताकि प्रशासनिक खर्च और समय की बचत हो सके।
2. JPC में प्रियंका गांधी की भूमिका क्या है?
प्रियंका गांधी इस JPC की सदस्य के रूप में विधेयक की समीक्षा में शामिल होंगी और इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर अपने विचार व्यक्त करेंगी।
3. क्या यह प्रणाली पहले लागू की गई थी?
हां, 1952 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होते थे।
4. संविधान में कितने अनुच्छेदों में संशोधन किया जाएगा?
संविधान में 1 नया अनुच्छेद जोड़ा जाएगा और 3 अन्य अनुच्छेदों में संशोधन किया जाएगा।
5. क्या “एक देश-एक चुनाव” से लोकल बॉडी के चुनाव भी प्रभावित होंगे?
कोविंद कमेटी ने सुझाव दिया है कि लोकल बॉडी चुनाव भी साथ कराए जा सकते हैं, लेकिन इस पर निर्णय अभी बाकी है।