Pratipada Tithi का वैदिक महत्व
प्रतिपदा तिथि, जिसे प्रथमा भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग की पहली तिथि है। यह तिथि शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों में आती है और प्रत्येक पक्ष की शुरुआत का प्रतीक होती है। प्रतिपदा तिथि के अधिपति देवता अग्नि हैं, जो ऊर्जा, शुद्धि और आरंभ के प्रतीक माने जाते हैं । इस तिथि को सभी प्रकार के शुभ कार्यों, जैसे गृह प्रवेश, विवाह, यज्ञ, होम-हवन, और पूजा-अर्चना के लिए अत्यंत शुभ माना गया है ।
प्रतिपदा तिथि का विशेष महत्व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को होता है, जब हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है। इस दिन ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना का आरंभ माना जाता है, इसलिए इसे अत्यंत पवित्र तिथि माना गया है ।
🌼 प्रतिपदा तिथि के प्रमुख पर्व एवं व्रत
प्रतिपदा तिथि पर कई महत्वपूर्ण पर्व और व्रत मनाए जाते हैं, जो इस तिथि के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं:
पर्व / व्रत | तिथि (मास) | विशेषता / महत्व |
---|---|---|
हिंदू नववर्ष | चैत्र शुक्ल प्रतिपदा | ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना का आरंभ; नवसंवत्सर की शुरुआत |
गुड़ी पड़वा | चैत्र शुक्ल प्रतिपदा | महाराष्ट्र में नववर्ष का उत्सव; घरों में गुड़ी की स्थापना |
नवरात्रि का आरंभ | चैत्र, आषाढ़, अश्विन, माघ शुक्ल प्रतिपदा | देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा का प्रारंभ |
गोवर्धन पूजा / अन्नकूट | कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा | भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की स्मृति में पूजा |
इन पर्वों के माध्यम से प्रतिपदा तिथि का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व स्पष्ट होता है।hindi.astroyogi.com
🛕 प्रतिपदा तिथि की पूजा विधि
प्रतिपदा तिथि पर पूजा-अर्चना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। पूजा विधि निम्नलिखित है:
- स्नान और शुद्धि: प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- संकल्प: हाथ में जल, पुष्प, अक्षत लेकर संकल्प लें कि आप प्रतिपदा तिथि की पूजा कर रहे हैं।
- अग्निदेव की पूजा: अग्निदेव का आह्वान करें और उन्हें पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें।
- विशेष मंत्रों का जाप: “ॐ अग्नये नमः” मंत्र का जाप करें।
- ब्राह्मणों को भोजन: पूजा के उपरांत ब्राह्मणों को सात्विक भोजन कराएं और दान दें।
- पंचांग श्रवण: नववर्ष के अवसर पर पंचांग श्रवण करें, जिससे वर्षभर की जानकारी प्राप्त हो।
इस प्रकार की पूजा विधि से व्यक्ति को आरोग्य, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
प्रतिपदा तिथि की पौराणिक कथा
🌅 ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना
हिंदू धर्म में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना का आरंभ किया था। ब्रह्म और नारद पुराण के अनुसार, यह तिथि सृष्टि के प्रारंभ की प्रतीक है। इस दिन को ‘प्रवरा’ तिथि घोषित किया गया था, जिसमें धार्मिक, सामाजिक, व्यावसायिक और राजनीतिक कार्यों की शुरुआत की जाती है, जो सफल मानी जाती है ।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सतयुग का प्रारंभ माना जाता है, और इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर प्रलयकाल में मनु की नौका को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था । इस तिथि को विक्रम संवत् की शुरुआत के रूप में भी जाना जाता है, जिसे सम्राट विक्रमादित्य ने शुरू किया था ।
🏔️ गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का आयोजन होता है, जो भगवान श्रीकृष्ण की एक महत्वपूर्ण लीला से संबंधित है। द्वापर युग में, देवराज इंद्र को अपने अभिमान का बोध कराने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने एक लीला रची। जब ब्रजवासी इंद्र की पूजा की तैयारी कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का सुझाव दिया, क्योंकि वही उनकी गायों को चारा प्रदान करता था।
ब्रजवासियों ने श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा की, जिससे इंद्र क्रोधित हो गए और मूसलधार वर्षा करने लगे। तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों को शरण दी। सात दिनों तक लगातार वर्षा के बाद, इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की ।
🌾 अन्नकूट उत्सव और गोवर्धन पूजा की विधि
गोवर्धन पूजा के दिन अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर भगवान को अर्पित किए जाते हैं। इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसकी पूजा की जाती है, और गायों की विशेष पूजा की जाती है ।
प्रतिपदा तिथि का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
प्रतिपदा तिथि न केवल पंचांग की पहली तिथि है, बल्कि यह धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस तिथि पर अनेक पर्व और व्रत मनाए जाते हैं, जो समाज में नवचेतना, ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करते हैं। अतः प्रतिपदा तिथि का पालन और पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को जीवन में सुख, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है।